जिन राहों पर चला नहीं मैं
जिन राहों पर चला नहीं मैं, उनके काँटों से क्या लेना?
अपनी चिह्नित डगर, आदि से, शूलों से आबाद रही है।।
व्यथित हृदय की कठिन वेदना
कर में थाम रखा कल्पों से,
अपनों का सहयोग मिलेगा
रहा प्रताड़ित इन गल्पों से।
आँखें भी अपने गह्वर में, क्लिष्ट वेदना को भर-भरकर
प्रलयकाल की जलसमाधि में, जन्मों से बर्बाद रही हैं।।
मौसम के करवट लेते ही
काँटों में मधु-बेर लगेंगे,
पाषाणों को खानेवाले
नरम, रसीले ढेर चुगेंगे।
मगर बबूलों की घाटी में, ऐसा भविल दिखाया रब ने
सुनियोजित किस्मत में अपनी, कंटक की तादाद रही है।
कबतक याद रखे यह कोई,
कबतक कोई आस बनाये?
झंझावातों में उठ-उठकर
मलयानिल को नाद लगाये।
रुँधे कंठ से कैसे निकले, कोमल वाणी आलापों की?
प्राण लूटने की प्रतिभा भी, लोगों की नायाब रही है।
नहीं अकर्मक तथ्य बढ़ाता
क्रमबद्ध, प्रलापित मुद्दों में
ढो-ढोकर थक जाता लाशें
जीवनगत सारे युद्धों में
सदा तराशूँ मधुर वेदना, साहित्य-सृजित उपकरणों से
मेरी गज़ल, गीत, कविताएँ, आहत की फ़रियाद रही हैं।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमन सर। इस स्नेह के लिए आभारी हूँ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-१२-२०१९ ) को "पुलिस एनकाउंटर ?"(चर्चा अंक-३५४२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सधन्यवाद नमन दीदी।
Deleteवाह! शानदार पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसर धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर अमित !
ReplyDeleteछायावादी कवियों के तुम योग्य उत्तराधिकारी हो.
सर धन्यवाद। सादर आभार एवं नमन🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Deleteबहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमन
ReplyDeleteशुक्रिया मैम। धन्यवाद।
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