कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

11 October 2018

मैंने रातों में चंदा को

मैंने रातों में चंदा को
✒️
सरल हृदय के हर कोने को, नंदन वन महकाते देखा
मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।

तारों के दीपित शिविरों में
रातों के तिरपाल तले,
विदा हुआ जब अर्क डूबता
अंधकार फुफकार चले।
वीर वेश में खद्योतों को, तंतु-तंतु हर्षाते देखा
मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।

नभ के उपवन में हर्षित हो
पंछी नेह लुटा बैठे,
निरख थके मन श्वेत सिंधु के
मंदाकिनी भुला बैठे।
निर्मोही उस नीलगगन को, छाती बहुत फुलाते देखा
मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।

चर्चाओं में देवलोक के
मानवीय गुण ही छाते,
पाँव पसारा जब से कलियुग
गंगोदक अब ना भाते।
अंत दाँव में, सहनशील को, दारुण कष्ट उठाते देखा
मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।
...“निश्छल”

30 comments:

  1. चर्चाओं में देवलोक के
    मानवीय गुण ही छाते,
    पाँव पसारा जब से कलियुग
    गंगोदक अब ना भाते।
    अंत दाँव में, सहनशील को, दारुण कष्ट उठाते देखा
    मैंने चंदा को रातों में, हँसकर नीर बहाते देखा।
    बेहतरीन भावों से सजी रचना 🙏

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    1. सादर धन्यवाद मैम🙏😊🙏

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी, हार्दिक अभिनंदन🙏😊🙏

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

    तारों के दीपित शिविरों में
    रातों के तिरपाल तले,
    विदा हुआ जब अर्क डूबता
    अंधकार फुफकार चले।

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    1. सादर धन्यवाद मैम🙏😊🙏

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  4. नभ के उपवन में हर्षित हो
    पंछी नेह लुटा बैठे,
    निरख थके मन श्वेत सिंधु के
    मंदाकिनी भुला बैठे।
    निर्मोही उस नीलगगन को, छाती बहुत फुलाते देखा
    मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।
    बहुत सुन्दर,सार्थक, लाजवाब कृति
    वाह!!!

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  5. बहुत सुन्दर ... मधुर गेयता लिए ... कुछ सार्थक सामयिक परिस्थिति को बाखूबी लिखा है ...

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    1. हार्दिक अभिनंदन सर🙏🙏🙏

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  6. प्रसाद जी की कामायनी की श्रृद्धा का शब्द सामर्थ्य लिये अभिराम आलोकित स्वर गंगा सा मधुर काव्य ।
    मन को प्रफुल्लित कर गई भाई अमित जी आपकी अप्रतिम रचना।

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    1. रचना पर स्नेहमय टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार दीदी

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    1. सादर आभार आदरणीया🙏🙏🙏

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  8. वाह बहुत ही सुन्दर

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    1. सधन्यवाद नमन सर, हार्दिक स्वागत है आपआ "मकरंद" पर

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  9. बहुत ही सुन्दर

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय🙏🙏🙏

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  10. अंत दाँव में, सहनशील को, दारुण कष्ट उठाते देखा
    मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।... बहुत सुंदर रचना

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  11. बहुत सुन्दर ! निश्छल जल-प्रवाह जैसी कविता ! पन्त जी की स्मृति को आपने ताज़ा कर दिया.

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    1. श्रद्धावनत नमन आदरणीय। स्नेहाकांक्षी🙏😊🙏

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  12. प्रिय अमित - इस मंच पर दो रचनाकारों में रहस्यवादी और छायावादी कवियों की छवि पाती हूँ| एक आप और एक बहन कुसुम कोठारी जी दोनों के अप्रितम काव्य चित्र मन को विस्मय से भर देते हैं | दोनों का मौलिक रचना संसार काव्य रसिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है | जीवन में भावों के दो चेहरों को सार्थकता से शब्दांकित किया है आपने | चाँद हंसता है तो नीर भी बहाता है जिसे कवि ही महसूस कर सकता है | कलियुग में नैतिक आदर्शों का बदला चेहरा ----
    चर्चाओं में देवलोक के
    मानवीय गुण ही छाते,
    पाँव पसारा जब से कलियुग
    गंगोदक अब ना भाते।
    अंत दाँव में, सहनशील को, दारुण कष्ट उठाते देखा
    मैंने रातों में चंदा को, हँसकर नीर बहाते देखा।!!!!!!!!!!
    बहुत ही लाजवाब अमित -- सराहना से परे सिर्फ शुभकामनायें उमड़ती हैं आपके लिए | मेरा हार्दिक स्नेह आपके लिए |

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद एवं सादर आभार दीदी। एक-डेढ़ साल से कोशिश कर रहा हूँ लेखन का, रचनाकार या कवि और इस तरह की और भी संज्ञाए, सिर के ऊपर से निकल जाती हैं। थोड़ा असहज महसूस होता है, शायद योग्यता नहीं होने के कारण ही ऐसा होता होगा।
      अभी एक साल पहले की बात है, एक मित्र ने मेरी एक कविता पर, कमेंट में छायावादी कवि कह कर संबोधित किया था। मुझे नहीं पता था तो बहुत ढूँढ़ा, अंत में गूगलिंग की तो पता लगा, कि छायावाद क्या होता है। भटकते हुए अज्ञानी मन की ऐसी और भी कहानियाँ हैं।
      हृदयगर्त से आपको धन्यवाद एवं अतिशय शुभेच्छाएँ आपके प्रभावशाली लेखन को🙏💐💐💐

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  13. बड़े बडाई न करे - बड़े ना बोले बोल
    रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल ?
    अपना मुल्यांकन दूसरों को करने दीजिये

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    1. हृदयतल से अभिनंदन दीदी🙏🙏🙏

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  14. मनोहर काव्यसृजन की बधाई..
    आपकी लेखन शैली मुझे बेहद अच्छी लगी.. एक अपनापन का एहसास कराती हुई...

    तेरा चेहरा तस्वीर बना, प्रतिबिम्बित मेरी आँखों में।

    हर क्षण नयनों के द्वार तुम्हारा चंचल मुखड़ा रहता है,
    हो खुली आंख या बंद पलक वो चाँद का टुकड़ा रहता है,
    सपने में भी तुम अक्सर ही मेरे सम्मुख आ जाते हो,
    आकर मेरे मन भावों में वो शब्द पिरो कर जाते हो।

    ये शब्द थिरकने लगते हैं भावों के लय पर अनायास,
    फिर काव्यसृजन होता सुंदर, नगमें बन जातीं बिन प्रयास,
    फिर यह प्रवाहमय अभिव्यक्ति मनमोहक होती जाती है,
    जिसको दुनियां पढ़ती, सुनती, या भावुक होकर गाती है।

    सब कहते, 'इन कविताओं में ये कशिश कहाँ से आती है',
    मैं हँसकर चुप रहता बहुधा यह बात गुप्त रह जाती है,
    तुम सृजन प्रेरणा मेरे हो, यह बात मैं सबसे क्यों बोलूँ,
    जो राज हृदय में दबा हुआ वह जिसपे-तिसपे क्यों खोलूँ।

    अतएव जिरह पर लोगों के मैं अक्सर ऐसा कहता हूँ,
    'मां सरस्वती का साधक हूँ, उनकी ही सेवा करता हूँ,
    उस महामयी की महिमा के प्रतिफल हैं सारे गीत मेरे,
    वो मधुर चेतना भरतीं हैं, इन गीतों में संगीत मेरे।'

    पर हुए मंजुरित, फल आए, तुमसे ही मेरे साखों में,
    तेरा चेहरा तस्वीर बना, प्रतिबिम्बित मेरी आँखों में।

    https://wp.me/p5vseB-o6

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    1. आदरणीय कौशल जी सादर अभिवादन,
      इस बेहतरीन रचना को प्रस्तुत करने के लिए आपको धन्यवाद।
      आपकी रचनाओं को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। एक कुशल रचनाकार का सान्निध्य पाकर मन में हर्ष का अनुभव हो रहा है। माँ सरस्वती का साधक वाकई पूजनीय होता है। अशेष शुभकामनाएँ एवं आदर भाव🙏🙏🙏

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  15. आपकी प्रवाहमयी भाषा व सुंदर भावों से मन आनंदित हो उठा है ।
    आपको अनंत शुभकामनाएँ ।

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  16. अमित जी आपकी रचनाओं में एक अलग ही सौन्दर्य है...मन झंकृत हो उठा l बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको l

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