ऐ हमदम...
✒️मन के मनके, मन के सारे, राज गगन सा खोल रहे हैं
अंधकार के आच्छादन में, छिप जाने से क्या हमदम..?
शोणित रवि की प्रखर लालिमा
नभ-वलयों पर तैर रही है,
प्रातःकालिक छवि दुर्लभ है
शकल चाँद की, गैर नहीं है।
किंतु, चंद ये अर्थ चंद को, स्वतः निरूपित करने होंगे
श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
छवि की छवि, छवि से परिभाषित
मानक कुछ ऐसे निश्चित हैं,
सोलह आने छवि निर्मल हो
मगर, विभूषित अत्यंचित हैं।
आभूषण का मेल नहीं यदि, सौम्य नहीं गर संरचना हो
संज्ञाओं के जप करने की, नहीं महत्ता है हमदम...।
...“निश्छल”
आपकी रचना निःशब्द कर जाती है।
ReplyDeleteअति सुंदर,सराहनीय साहिती सृजन अमित जी।
सधन्यवाद आभार श्वेता जी। बहुत दिनों के बाद आज कलम चली है, आपकी पंक्तियाँ निश्चित रूप से आशीषों के समान फलित होंगींं। शुभरात्रि।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार एवं नमन आदरणीया दीदी।
Deleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद मैम।
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteवैसे आज का ज़माना तो बनावट का है. पीतल पर सोने का परत या उस पर सोने का पानी चढ़ाने की कला ही यत्र-तत्र-सर्वत्र दिखाई देती है.
सर्वथा यथार्थ कहा सर आपने। सादर नमन।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसर धन्यवाद।
Deleteशोणित रवि की प्रखर लालिमा
ReplyDeleteनभ-वलयों पर तैर रही है,
प्रातःकालिक छवि दुर्लभ है
शकल चाँद की, गैर नहीं है।
अहा हा.. शब्द शब्द निशब्द कर रहा है... 👌 👌 👌 👌 बेहतरीन सृजन
दीदी नमन, आभार, सादर धन्यवाद।
Deleteअद्भुत रचना
ReplyDeleteहृदयतल से शुक्रिया मैम।
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय।
Deleteबेहतरीन रचना.
ReplyDeleteआप अपनी रचनाओं से अवगत कराते रहें.
मैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (११-०७-२०२१) को
"कुछ छंद ...चंद कविताएँ..."(चर्चा अंक- ४१२२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन सादर नमन आपको
अलंकारों से सुसज्जित सुंदर सृजन।
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