कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

28 March 2022

हम जियेंगे बेसहारे

हम जियेंगे बेसहारे

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स्नात नैनों को, दुसह स्मृति में झुकाकर, दीन जैसे

सांध्य-ऊषा में फिरेंगे, रेणु बन सर के किनारे।

अब गगन से रक्त बरसे, या कि गिर जाए गगन ही

प्रेयसी, दुःस्वप्न की पीड़ा कहो कैसे बिसारें?


काल-व्यापी ईश मेरे, ओ भुवन के एक स्वामी

इष्ट मेरे, हे प्रणेता, आपको यह मन पुकारे।

दैव, मेरी एक इच्छा, हो निरत मुझमें प्रियंकर

डाल दो आशीष मेरे शीश पर जैसे सितारे।।


हाँ, यही संकल्प लेकर  देवगृह में तुम गई थीं

और देवों से निवेदन भी किया कारण हमारे।

श्रेय जाता है हमारे उम्र के इन तंतुओं का

उर्वशी मेरी, छिटककर अंश में प्रतिपल तिहारे।।


स्वप्न में ही, हाँ सही, आना मगर हिय में मचलकर

दृग सलाख़ों में रखेंगे मिन्नतों की चुन दिवारें।

लालची, हैं चक्षु की हृत कामना के मूल निंदित

अन्यथा, आभास मत करना कमी को तुम हमारे।।


हम निहारेंगे प्रफुल्लित, पुष्प सज्जित घाटियों को

इस समंदर से हृदय में आस के इक फूल धारे।

आचमन कर, अश्रु धारा में, शयन कर योगियों सा

अर्धनिद्रा में तड़पकर पग पखारेंगे तिहारे।।


ओ विकट संवेदनाओं व्यक्त कर दो तुम ज़रा सा

एक जीवन में भला अब और कितने व्रण निवारें?

हर सुबह वंदन करेंगे, और अभिनंदन करेंगे

जाप करके साधकों सा, हम जियेंगे बेसहारे।।

...“निश्छल”

07 March 2022

रे मुझे बना दे कवि कोई...

 रे मुझे बना दे कवि कोई...



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मुझे बना दे कवि कोई

निशिदिन उसका गुणगान करूँ।

भजूँ दिवस में उसे

रैन में कविता का विषपान करूँ।।

रे मुझे बना दे कवि कोई...


आसार नहीं, कर पाऊँगा

अब मंत्रमुग्ध भावी जन को,

पठनीय काव्य-मंगलघट से

भर दे कोई मैले मन को।


क्षणिक हँसी है ओठों पर, क्षण-क्षण उर में अज्ञान भरूँ।

मुझे बना दे कवि कोई, निशिदिन उसका गुणगान करूँ।।


मत प्रश्न पूछ मेरे भाई

ओ मीत! पिटारे बंद करो,

जो इक संगीत न गा पाये

तत्काल गिटारें बंद करो।


रागों का प्रथम प्रवाहक, ध्वनि में विद्युत संधान करूँ।

मुझे बना दे कवि कोई, निशिदिन उसका गुणगान करूँ।।


क्या लिख लेने से नाम तले

'कवि' किंचित एक सियाही से,

पा जाता कवि ऐश्वर्य-अमर

श्रोताओं की अगुआई से?


मौलिक यह प्रश्न अधर पर ले, मैं शत-शत सागर पान करूँ।

मुझे बना दे कवि कोई, निशिदिन उसका गुणगान करूँ।।


भजूँ दिवस में उसे, रैन में कविता का विषपान करूँ।

रे मुझे बना दे कवि कोई...।।

...“निश्छल”