कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

29 September 2018

रद्दी में फेंकी यादों को

रद्दी में फेंकी यादों को
✒️
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।

शालीन घटा की छावों
दो पल सोने को जीता
साँसों की धुंध नहाने
बेसब्र, समय को सीता;
रेशम करधन ललचाकर
स्वप्निल आँखें ये झाँकें
छुपकर जूड़ों से बाली
की चमक दिखे जब काँधें।
घाटों पर घुट घुट रहा नित्य पर मंजिल नहीं बनाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।

तुझको ही देख सिहरना
फिर ठंडी आहें भरना
बातें तुझसे करने के
भूचाल हृदय में धरना;
वो बंसी सी आवाजें
सुनने को बहुत तरसना
कानों में पड़ते वाणी
उस अमरबेल सा खिलना।
तेरी कुमकुम सी यादों के आगार बनाकर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।

बातें वो दबें, उठें ना
बातों-बातों में सोचूँ
कंपित होते अधरों से
बातें ऐसे ही नोचूँ;
बदनाम गली के भौंरे
भुन जायें, देख सकें ना
चर्चे ये गली मोहल्ले
फैलें भी कभी कहीं ना।
इसलिये हिया को शिलाखंड से दबा-दबा कर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।

जब तेरी ही चमकीली
नज़रों में डूब नहाये
अकुलाया मन पंछी था
बहु भाँति अधर मुस्काये;
रंगों में घुलकर मेरे
तुम मेरी, हूँ मैं तेरा
इक दूजे के सीने में
अब होता सदा सवेरा।
तेरी उन निर्झर प्रेम पंक्ति के बाण बनाकर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।

फूल गिरें शव पर मेरे
शौक नहीं मुझको ऐसे
आँखें, झेलम-सिंधु बहें
कहो गुमाँ किसको, कैसे?
तेरी प्रेम पंक्तियों से
तर्पण भी मुझको मिलना
झुकते नैन इशारों से
टेसू फूलों का  खिलना।
मैं अपनी शव की यात्रा में बाहें पसार कर आया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
...“निश्छल”

22 comments:

  1. तेरी कुमकुम सी यादों के आगार बनाकर लाया हूँ,
    रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
    बहुत सुंदर रचना 👌👌

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 02 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. रचना को सम्मानित करने के लिए आपका आभार मैम🙏🙏🙏

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  3. तुझको ही देख सिहरना
    फिर ठंडी आहें भरना
    बातें तुझसे करने के
    भूचाल हृदय में धरना;
    वो बंसी सी आवाजें
    सुनने को बहुत तरसना

    बहुत सुंदर रचना ,आभार आपका

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  4. अमित जी आपकी लेखनी से निकली हर अभिव्यक्ति अचंभित कर जाती है..कितनी खूबसूरती से आप भावों को शब्दों मेऔ पिरोते हैं कि मन विचार मंथन करने पर.विवश हो जाता है।
    बेहद हृदस्पर्शी रचना। बधाई आपको और अनंत शुभकामनाएँ भी मेरी स्वीकार करें।

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    1. ऐसी टिप्पणियों से मिली प्रेरणा, अंतर्मन को प्रफुल्लित कर जाती है। बहुत बहुत आभार आपका श्वेता जी🙏🙏🙏

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    1. "मकरंद" पर आपका अभिनंदन आदरणीय। सादर अभिवादन🙏🙏🙏

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  6. वाह ... गज़ब की गेयता लिए सुन्दर छंद ...
    प्रेम की अभिव्यक्ति है हर छंद में ... भावों का संगम ज्वार भाटा बन के उठ रहा है जैसे इन शब्दों में ... बहुत खूब ...

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  7. मैं अपनी शव की यात्रा में बाहें पसार कर आया हूँ,
    रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
    बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...
    लाजवाब...
    वाह!!!

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    1. हृदयतल से आभार आदरणीया🙏😊🙏

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    1. सादर स्वागत है आपका "मकरंद" पर। श्रद्धावनत नमन🙏😊🙏
      लेकिन इतना जरूर पूछूँगा कि 'हाऊ डू यू नो'🙏🙏🙏😂😂😂🙏🙏🙏

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  9. वाहः शानदार रचना

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    1. सादर धन्यवाद आदरणीय🙏😊🙏

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  10. बेहतरीन और तिक्त उन्वान अमित जी ...
    शब्द शब्द तीखा पैना
    रद्दी में से झांक रहा
    व्यर्थ नहीं हूँ में तनि भी
    रद्दी मैं क्यों झोंक रजा !

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    1. सादर अभिवादन दीदी। बहुत दिनों के बाद...🤔

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  11. अद्भुत!!अमित जी जवाब नही आपकी रचनात्मकता का। काव्य सुरसरि बह निकलती है ,निश्छल सी बहुत सुंदर गीत जैसी रचना ।

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    1. सादर नमन एवं आभार दीदी

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