रद्दी में फेंकी यादों को
✒️
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
शालीन घटा की छावों
दो पल सोने को जीता
साँसों की धुंध नहाने
बेसब्र, समय को सीता;
रेशम करधन ललचाकर
स्वप्निल आँखें ये झाँकें
छुपकर जूड़ों से बाली
की चमक दिखे जब काँधें।
घाटों पर घुट घुट रहा नित्य पर मंजिल नहीं बनाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
तुझको ही देख सिहरना
फिर ठंडी आहें भरना
बातें तुझसे करने के
भूचाल हृदय में धरना;
वो बंसी सी आवाजें
सुनने को बहुत तरसना
कानों में पड़ते वाणी
उस अमरबेल सा खिलना।
तेरी कुमकुम सी यादों के आगार बनाकर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
बातें वो दबें, उठें ना
बातों-बातों में सोचूँ
कंपित होते अधरों से
बातें ऐसे ही नोचूँ;
बदनाम गली के भौंरे
भुन जायें, देख सकें ना
चर्चे ये गली मोहल्ले
फैलें भी कभी कहीं ना।
इसलिये हिया को शिलाखंड से दबा-दबा कर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
जब तेरी ही चमकीली
नज़रों में डूब नहाये
अकुलाया मन पंछी था
बहु भाँति अधर मुस्काये;
रंगों में घुलकर मेरे
तुम मेरी, हूँ मैं तेरा
इक दूजे के सीने में
अब होता सदा सवेरा।
तेरी उन निर्झर प्रेम पंक्ति के बाण बनाकर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
फूल गिरें शव पर मेरे
शौक नहीं मुझको ऐसे
आँखें, झेलम-सिंधु बहें
कहो गुमाँ किसको, कैसे?
तेरी प्रेम पंक्तियों से
तर्पण भी मुझको मिलना
झुकते नैन इशारों से
टेसू फूलों का खिलना।
मैं अपनी शव की यात्रा में बाहें पसार कर आया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
...“निश्छल”
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रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
शालीन घटा की छावों
दो पल सोने को जीता
साँसों की धुंध नहाने
बेसब्र, समय को सीता;
रेशम करधन ललचाकर
स्वप्निल आँखें ये झाँकें
छुपकर जूड़ों से बाली
की चमक दिखे जब काँधें।
घाटों पर घुट घुट रहा नित्य पर मंजिल नहीं बनाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
तुझको ही देख सिहरना
फिर ठंडी आहें भरना
बातें तुझसे करने के
भूचाल हृदय में धरना;
वो बंसी सी आवाजें
सुनने को बहुत तरसना
कानों में पड़ते वाणी
उस अमरबेल सा खिलना।
तेरी कुमकुम सी यादों के आगार बनाकर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
बातें वो दबें, उठें ना
बातों-बातों में सोचूँ
कंपित होते अधरों से
बातें ऐसे ही नोचूँ;
बदनाम गली के भौंरे
भुन जायें, देख सकें ना
चर्चे ये गली मोहल्ले
फैलें भी कभी कहीं ना।
इसलिये हिया को शिलाखंड से दबा-दबा कर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
जब तेरी ही चमकीली
नज़रों में डूब नहाये
अकुलाया मन पंछी था
बहु भाँति अधर मुस्काये;
रंगों में घुलकर मेरे
तुम मेरी, हूँ मैं तेरा
इक दूजे के सीने में
अब होता सदा सवेरा।
तेरी उन निर्झर प्रेम पंक्ति के बाण बनाकर लाया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
फूल गिरें शव पर मेरे
शौक नहीं मुझको ऐसे
आँखें, झेलम-सिंधु बहें
कहो गुमाँ किसको, कैसे?
तेरी प्रेम पंक्तियों से
तर्पण भी मुझको मिलना
झुकते नैन इशारों से
टेसू फूलों का खिलना।
मैं अपनी शव की यात्रा में बाहें पसार कर आया हूँ,
रद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
...“निश्छल”
तेरी कुमकुम सी यादों के आगार बनाकर लाया हूँ,
ReplyDeleteरद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
बहुत सुंदर रचना 👌👌
सादर नमन मैम🙏🙏🙏
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 02 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteरचना को सम्मानित करने के लिए आपका आभार मैम🙏🙏🙏
Deleteतुझको ही देख सिहरना
ReplyDeleteफिर ठंडी आहें भरना
बातें तुझसे करने के
भूचाल हृदय में धरना;
वो बंसी सी आवाजें
सुनने को बहुत तरसना
बहुत सुंदर रचना ,आभार आपका
करबद्ध नमन सर🙏🙏🙏
Deleteअमित जी आपकी लेखनी से निकली हर अभिव्यक्ति अचंभित कर जाती है..कितनी खूबसूरती से आप भावों को शब्दों मेऔ पिरोते हैं कि मन विचार मंथन करने पर.विवश हो जाता है।
ReplyDeleteबेहद हृदस्पर्शी रचना। बधाई आपको और अनंत शुभकामनाएँ भी मेरी स्वीकार करें।
ऐसी टिप्पणियों से मिली प्रेरणा, अंतर्मन को प्रफुल्लित कर जाती है। बहुत बहुत आभार आपका श्वेता जी🙏🙏🙏
Deleteसुन्दर
ReplyDelete"मकरंद" पर आपका अभिनंदन आदरणीय। सादर अभिवादन🙏🙏🙏
Deleteवाह ... गज़ब की गेयता लिए सुन्दर छंद ...
ReplyDeleteप्रेम की अभिव्यक्ति है हर छंद में ... भावों का संगम ज्वार भाटा बन के उठ रहा है जैसे इन शब्दों में ... बहुत खूब ...
करबद्ध नमन सर🙏🙏🙏
Deleteमैं अपनी शव की यात्रा में बाहें पसार कर आया हूँ,
ReplyDeleteरद्दी में फेंकी यादों को कुछ, छिपा-छिपा कर लाया हूँ।
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...
लाजवाब...
वाह!!!
हृदयतल से आभार आदरणीया🙏😊🙏
DeleteWah!!
ReplyDeleteसादर स्वागत है आपका "मकरंद" पर। श्रद्धावनत नमन🙏😊🙏
Deleteलेकिन इतना जरूर पूछूँगा कि 'हाऊ डू यू नो'🙏🙏🙏😂😂😂🙏🙏🙏
वाहः शानदार रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय🙏😊🙏
Deleteबेहतरीन और तिक्त उन्वान अमित जी ...
ReplyDeleteशब्द शब्द तीखा पैना
रद्दी में से झांक रहा
व्यर्थ नहीं हूँ में तनि भी
रद्दी मैं क्यों झोंक रजा !
सादर अभिवादन दीदी। बहुत दिनों के बाद...🤔
Deleteअद्भुत!!अमित जी जवाब नही आपकी रचनात्मकता का। काव्य सुरसरि बह निकलती है ,निश्छल सी बहुत सुंदर गीत जैसी रचना ।
ReplyDeleteसादर नमन एवं आभार दीदी
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