भ्रमर वीर मतवाला
✒️मकरंदों की भरी सभा में,
गुंजन करनेवाला
कैद हुआ है कुसुम पाश में,
भ्रमर वीर मतवाला।
अहं बहुत है निज प्रभुता का,
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
चिहुँक - चिहुँक कर नेत्र खोलता,
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
अरि की नहीं जरूरत उसको,
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कैद हुआ है कुसुम पाश में, भ्रमर वीर मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कैद हुआ है कुसुम पाश में, भ्रमर वीर मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
...“निश्छल”