कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

10 July 2019

भ्रमर वीर मतवाला

भ्रमर वीर मतवाला
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मकरंदों की भरी सभा में,
गुंजन करनेवाला
कैद हुआ है कुसुम पाश में,
भ्रमर वीर मतवाला।

अहं बहुत है निज प्रभुता का,
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।

चिहुँक - चिहुँक कर नेत्र खोलता,
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।

अरि की नहीं जरूरत उसको,
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कैद हुआ है कुसुम पाश में, भ्रमर वीर मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
...“निश्छल”

01 July 2019

सो जा चाँद, दुलारे

सो जा चाँद, दुलारे
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सो जा चाँद, दुलारे मेरे, बीत गया युग सारा
धरा धवल हो गयी निशा में, सोता है जग सारा।

मन की गति ना समझ सका मैं, ना तुमको समझाता
जबरन कल की सुबह बनेगा, सूरज भाग्य विधाता;
यही जगत की रीत बुरी है, दुखी बहुत जग सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...

अजमंजस में उतराते हैं, नैन तुम्हारे रीते
चंद्रप्रभा की खान दुलारे, हारे हो या जीते;
जीत - जीतकर जग को प्यारे, हार गया मैं सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...

मंजु पुष्प से शोभित होते, रजनी के चौबारे
नृत्य करें अंजुम आँगन में, टिमटिम गीत उचारें;
धरा धवल हो गयी निशा में, सोता है जग सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
...“निश्छल”