सो जा चाँद, दुलारे
✒️सो जा चाँद, दुलारे मेरे, बीत गया युग सारा
धरा धवल हो गयी निशा में, सोता है जग सारा।
मन की गति ना समझ सका मैं, ना तुमको समझाता
जबरन कल की सुबह बनेगा, सूरज भाग्य विधाता;
यही जगत की रीत बुरी है, दुखी बहुत जग सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
जबरन कल की सुबह बनेगा, सूरज भाग्य विधाता;
यही जगत की रीत बुरी है, दुखी बहुत जग सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
अजमंजस में उतराते हैं, नैन तुम्हारे रीते
चंद्रप्रभा की खान दुलारे, हारे हो या जीते;
जीत - जीतकर जग को प्यारे, हार गया मैं सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
चंद्रप्रभा की खान दुलारे, हारे हो या जीते;
जीत - जीतकर जग को प्यारे, हार गया मैं सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
मंजु पुष्प से शोभित होते, रजनी के चौबारे
नृत्य करें अंजुम आँगन में, टिमटिम गीत उचारें;
धरा धवल हो गयी निशा में, सोता है जग सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
नृत्य करें अंजुम आँगन में, टिमटिम गीत उचारें;
धरा धवल हो गयी निशा में, सोता है जग सारा
सो जा चाँद, दुलारे ...
...“निश्छल”
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी, सादर आभार। धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर। अंतिम छंद बार बार पढ़ने को मोहित करता हुआ।
ReplyDeleteसधन्यवाद नमन मैम।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति अमित जी
ReplyDeleteधन्यवाद मैम।
Deleteवाह!चित्त प्रफुल्लित कर दिया आपने। बधाई और आभार।
ReplyDeleteसर सादर नमन।
Deleteमंजु पुष्प से शोभित होते, रजनी के चौबारे
ReplyDeleteनृत्य करें अंजुम आँगन में, टिमटिम गीत उचारें;
धरा धवल हो गयी निशा में, सोता है जग सारा
बहुत खूब प्रिय अमित ! इतनी प्यारी लोरी चाँद को सुनाओगे तो वह सचमुच मधुर निद्रा में निमग्न हो सो जाएगा ! क्या कहूं तुम्हारी रचनाओ के लिए मुझे सराहना के शब्द नहीं मिलते | बस हार्दिक शुभकामनायें देती हूँ | ये शब्दप्रवाह और माधुर्य अमर हो ! सस्नेह