भ्रमर वीर मतवाला
✒️मकरंदों की भरी सभा में,
गुंजन करनेवाला
कैद हुआ है कुसुम पाश में,
भ्रमर वीर मतवाला।
अहं बहुत है निज प्रभुता का,
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
चिहुँक - चिहुँक कर नेत्र खोलता,
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
अरि की नहीं जरूरत उसको,
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कैद हुआ है कुसुम पाश में, भ्रमर वीर मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कैद हुआ है कुसुम पाश में, भ्रमर वीर मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
...“निश्छल”
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार मैम।
Deleteअहं बहुत है निज प्रभुता का,
ReplyDeleteरौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
बहुत खूब !!
बहुत बहुत आभार आदरणीया।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
रचना के मानवर्धन के लिए सादर शुक्रिया श्वेता जी।
Deleteबेहतरीन सृजन आदरणीय
ReplyDeleteसादर
सादर आभार मैम.
Deleteसधन्यवाद नमन मैम।
ReplyDeleteउम्दा लेखन
ReplyDeleteधन्यवाद मैम।
Deleteअंलकृत सरस सृजन अनुपम काव्य भाई अमित जी ।
ReplyDeleteआभार दीदी।
Deleteबहुत लाजवाब सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत बहुत आभार मैम।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमकरदों की महासभा और कुसुमपाश में बंधा नटखट वीर भ्रमर मतवाला !!!!!! बहुत ही प्यारी कल्पना और उसका मधुर शब्दांकन प्रिय अमित | ये सुंदर कल्पना का सब्जबाग तुम्ही सजा सकते हो , हे ! विलक्षण कविराज !! बहुत बहुत शुभकामनायें | सस्नेह
ReplyDeleteलाजवाब 👌 👌
ReplyDeleteअरि की नहीं जरूरत उसको,
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कटु सत्य