कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

10 July 2019

भ्रमर वीर मतवाला

भ्रमर वीर मतवाला
✒️
मकरंदों की भरी सभा में,
गुंजन करनेवाला
कैद हुआ है कुसुम पाश में,
भ्रमर वीर मतवाला।

अहं बहुत है निज प्रभुता का,
रौब दिखाता धीरे
बन वैरागी रास रचाता,
कमलताल के तीरे;
अस्त हुआ सूरज संध्या में, लालच में मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।

चिहुँक - चिहुँक कर नेत्र खोलता,
कुसुम पंख के नीचे
बंधन पर विश्वास नहीं है,
बरबस आँखें मीचे;
मगर बँधा है मोहपाश में, मोहित करनेवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।

अरि की नहीं जरूरत उसको,
जो प्रपंच करता हो
स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
जो आहत करता हो;
कैद हुआ है कुसुम पाश में, भ्रमर वीर मतवाला
मकरंदों की भरी सभा में, गुंजन करनेवाला।
...“निश्छल”

18 comments:

  1. बेहतरीन रचना

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  2. अहं बहुत है निज प्रभुता का,
    रौब दिखाता धीरे
    बन वैरागी रास रचाता,
    कमलताल के तीरे;
    बहुत खूब !!

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. रचना के मानवर्धन के लिए सादर शुक्रिया श्वेता जी।

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  4. बेहतरीन सृजन आदरणीय
    सादर

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  5. सधन्यवाद नमन मैम।

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  6. अंलकृत सरस सृजन अनुपम काव्य भाई अमित जी ।

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  7. बहुत लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. मकरदों की महासभा और कुसुमपाश में बंधा नटखट वीर भ्रमर मतवाला !!!!!! बहुत ही प्यारी कल्पना और उसका मधुर शब्दांकन प्रिय अमित | ये सुंदर कल्पना का सब्जबाग तुम्ही सजा सकते हो , हे ! विलक्षण कविराज !! बहुत बहुत शुभकामनायें | सस्नेह

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  10. लाजवाब 👌 👌
    अरि की नहीं जरूरत उसको,
    जो प्रपंच करता हो
    स्वयं सिद्ध दुर्भाव दंड है,
    जो आहत करता हो;
    कटु सत्य

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