फल बड़े प्यारे मिलेंगे
✒️यह तड़प ये यातनाएँ, झेलकर मैं हँस रहा हूँ,
क्या मुझे इन आँसुओं के, फल निरा खारे मिलेंगे?
दृष्टि मेरी हीन तुमसे
और तुम होकर जुदा खुश,
भ्रांति के इस दौर में हैं
अनमने कुछ मीत भी खुश;
क्या लगावों के गगन पथ, जीतने वाले विहग को,
न्याय के दरबार वाले, कंट से चारे मिलेंगे?
शब्द मेरे दूर तुमसे
कंठ हैं अवरुद्ध ऐसे,
साँस लेना वायु के बिन
मीन हों बिन नीर जैसे;
साँसतों की कोठरी में, घुट रहा हूँ मैं अकिंचन,
ग्रास करने को सदा क्या, राह में प्यारे मिलेंगे?
स्तुत्य हैं आसीन वर्षों
से जगत की नादियों में,
कुंदनों के लालची वे
द्वेषरत कलनादियों में;
वंदितों के आश्रमों में, एक कुंठित जीव को क्या,
आस के बदले भयंकर, शाप के नारे मिलेंगे?
माँगता हूँ आज सारी
बिलबिलाती जिंदगी की,
डूबतीं साँसें विभाजित
क्रंदनों की आहटें भी;
क्रुद्ध ना होना कभी तुम, दुख ज़रा सा ही जताना,
हो कदाचित जन्म अगला, फल बड़े प्यारे मिलेंगे।
...“निश्छल”
माँगता हूँ आज सारी
ReplyDeleteबिलबिलाती जिंदगी की,
डूबतीं साँसें विभाजित
क्रंदनों की आहटें भी;
क्रुद्ध ना होना कभी तुम, दुख ज़रा सा ही जताना,
हो कदाचित जन्म अगला, फल बड़े प्यारे मिलेंगे।
बहुत खूब.....अमित जी
सादर धन्यवाद आदरणीया।
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ReplyDeleteशब्द मेरे दूर तुमसे
कंठ हैं अवरुद्ध ऐसे,
साँस लेना वायु के बिन
मीन हों बिन नीर जैसे;
साँसतों की कोठरी में, घुट रहा हूँ मैं अकिंचन,
ग्रास करने को सदा क्या, राह में प्यारे मिलेंगे?
ऐसी अनोखी अभिव्यक्ति अचंभित करती है..वाहह्हह ...👌👌
हमेशा की तरह सराहनीय सृजन अमित जी👍👌👌
आदर सहित धन्यवाद एवं अभिनंदन आपका।
Deleteस्तुत्य हैं आसीन वर्षों
ReplyDeleteसे जगत की नादियों में,
कुंदनों के लालची वे
द्वेषरत कलनादियों में;
वंदितों के आश्रमों में, एक कुंठित जीव को क्या,
आस के बदले भयंकर, शाप के नारे मिलेंगे?....बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
सादर
सधन्यवाद नमन मैम।
Deleteशब्द मेरे दूर तुमसे
ReplyDeleteकंठ हैं अवरुद्ध ऐसे,
साँस लेना वायु के बिन
मीन हों बिन नीर जैसे;
साँसतों की कोठरी में, घुट रहा हूँ मैं अकिंचन,
ग्रास करने को सदा क्या, राह में प्यारे मिलें बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत-बहुत आभार आदरणीया।
Deleteबहुत सुन्दर अमित निश्छल !
ReplyDelete'वंदितों के आश्रमों में, एक कुंठित जीव को क्या,
आस के बदले भयंकर, शाप के नारे मिलेंगे?'
पिछले 71 साल की, हमारे देशवासियों की व्यथा-कथा को तुमने इन दो पंक्तियों में ही कह दिया.
आपकी नज़र पड़ी, रचना धन्य हो गई आदरणीय।
Deleteअद्भुत लेखन.👌👌👌👌 क्रंदन है यह जीव जगत का.
ReplyDeleteसाभार नमन मैम।
Deleteनिशब्द आपकी लेखनी को नमन भाई आपकी लेखन कला को किसी एक विधा का नाम देना नामुमकिन है ब अद्भुत काव्य धारा भावों का अपूर्व संगम।
ReplyDeleteशुभाशीषों का सादर प्रार्थी दीदी🙏🏻🙏🏻🙏🏻।
Deleteआपकी बेहतरीन लेखनी को नमन आदरणीय निश्छल जी।
ReplyDeleteहार्दिक अभिनंदन सर।
DeleteKya baat! Aapki bhasha jitni pranjal h bhav bhi utne hi prakhar hn.
ReplyDeleteसादर आभार आपका, "मकरंद" पर हार्दिक अभिनंदन है🙏🏻🙏🏻🙏🏻।
Deleteमाँगता हूँ आज सारी
ReplyDeleteबिलबिलाती जिंदगी की,
डूबतीं साँसें विभाजित
क्रंदनों की आहटें भी;
क्रुद्ध ना होना कभी तुम, दुख ज़रा सा ही जताना,
हो कदाचित जन्म अगला, फल बड़े प्यारे मिलेंगे।
प्रिय अमित अबोध से चंद प्रश्न और उनके उत्तर भी साथ ही | लगन पथ अनोखा यहाँ जो मिल जाए वही प्यारा |पर इस व्यथा कथा को कौन सुने और कौन समझे ? एक विद्वान अथाह्ज्ञान युक्त कवि के सिवाय ? सुंदर बोद्धिक सृजन हमेशा की तरह | निशब्द करने वाला | मेरी हार्दिक शुभकामनायें और स्नेह हमेशा की तरह |
हार्दिक अभिनंदन दीदी। स्नेहाशीषों की यह फुहार सदा बनी रहे। आदर सहित नमन।
Deleteमाँगता हूँ आज सारी
ReplyDeleteबिलबिलाती जिंदगी की,
डूबतीं साँसें विभाजित
क्रंदनों की आहटें भी;
क्रुद्ध ना होना कभी तुम, दुख ज़रा सा ही जताना,
हो कदाचित जन्म अगला, फल बड़े प्यारे मिलेंगे।
अद्भुत, अविस्मरणीय,एवं लाजवाब...
कमाल का सृजन
वाह!!!
हृदयातिरेक शुक्रिया आदरणीया।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 9 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमन सर। रचना को गौरवान्वित करने के लिए आपका आभारी हूँ।
Deleteवाह!!खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसधन्यवाद नमन मैम।
Deleteआवश्यक सूचना :
ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
आदरणीय, नमन। इस सुप्रसिद्ध त्रैमासिक पत्रिका को पढ़ा। योग्य रचनाओं का बड़े ही कौशल के साथ प्रस्तुतिकरण वाकई सराहनीय है। आदरणीय रवीन्द्र जी और आपको भावी भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ। नमन।
Deleteगहरा एहसास ...
ReplyDeleteभावपूर्ण ... एक एहसास जो बिखर जाता है सचना के साथ साथ मन में ...
सर नमन। धन्यवाद। सादर आभार।
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