कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

14 December 2019

तारों का आगार

तारों का आगार
✒️
पतली पगडंडी से होकर, झुरमुट के उस पार।
थोड़ा आगे, पार क्षितिज के, तारों का आगार।।

कहीं हम बैठ किनारे पर रच लेंगे
नन्हा-प्यारा गीत,
नीतियाँ, जो भी कहती इस दुनिया की
हमको क्या है मीत?
कि हमको जाना है पैदल ही चलकर, पगडंडी के पार।
बहारें बिछी मिलेंगीं, उन राहों पर, तारों का आगार।।

मगन हो अपनी धुन में बात करेंगे
हो-होकर लवलीन,
मधुर संगीतों के गुंजन श्रुतियों में
कर देंगे तल्लीन।
सुनाई देगी भौंरों के गुंजन की, भीनी सी झंकार।
सुरों में गात झूमते होंगे, ऊपर, तारों का आगार।।

मशीनीकृत जीवन में शांति ढूँढने
सरिताओं के कूल,
वनस्पति से लिपटाते मिल जाएँगे
वे बरसाती फूल।
सभी सांसारिक बंधन का कर देंगे, स्वेच्छा से परिहार।
बनायेंगे अपनी दुनिया, जिसमें हो, तारों का आगार
...“निश्छल”

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. प्रकृति के सानिध्य में मन के भावों की सहज अभिव्यक्ति बहुत ही खूबसूरती सी रची है आपने ...,बहुत सुन्दर सृजन ।

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  3. बेहद खूबसूरत रचना

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  4. मगन हो अपनी धुन में बात करेंगे
    हो-होकर लवलीन,
    मधुर संगीतों के गुंजन श्रुतियों में
    कर देंगे तल्लीन।
    सुनाई देगी भौंरों के गुंजन की, भीनी सी झंकार।
    सुरों में गात झूमते होंगे, ऊपर, तारों का आगार।।... बेहतरीन सृजन अनुज
    सादर

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  5. सुनाई देगी भौंरों के गुंजन की, भीनी सी झंकार।
    सुरों में गात झूमते होंगे, ऊपर, तारों का आगार।।... बेहतरीन

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