कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

13 December 2019

बहिष्कृत

बहिष्कृत
✒️
आज, जंगल से बहिष्कृत, हो गए हैं रीछ सारे
दुश्मनी, वनराज को थी, शक्तिशाली हाथियों से।

दो दिनों से गीदड़ों ने, माँद, छोड़ी भी नहीं थी।
वनबिलावों के घरों में, एक कौड़ी भी नहीं थी।।
बिलबिलाते चेहरों पर, थी मगर यह बात अंकित।
भंग है इंसानियत की, साख कुछ ही जातियों से।।
दुश्मनी, वनराज को थी...

वे, सरल, सुकुमार थे जो, शाक था आहार जिनका।
निश्चयी अब हो चुके हैं, भक्ष्य होगा घास-तिनका।।
किंतु, यह आरोप तय था, कुंजरों के शाह के सिर।
है बड़ा जोखिम यहाँ पर, शांति के कुछ साथियों से।।
दुश्मनी, वनराज को थी...

छद्म उत्पातों भरा जग, छल, छली से हार जाता।
जो यहाँ सद्भाव रखता, जीवनीभर मात खाता।।
उष्ट्र, निज पुरुषार्थ के बल, हो गया बंधक सदा को।
तेंदुओं के शीश मिलते, सिंधु वाली घाटियों से।।
दुश्मनी, वनराज को थी...

आँसुओं से तरबतर थे, पादपों के पात सारे।
लौट आएँगे पुराने, इन दरख़्तों के सहारे।।
जंगलों के छोर तक यह, इक मुनादी हो गयी थी।
स्वस्थ रखना है चमन को, क्रूर-घातक घातियों से।।
दुश्मनी, वनराज को थी, शक्तिशाली हाथियों से।।
...“निश्छल”

5 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१५ -१२ -२०१९ ) को "जलने लगे अलाव "(चर्चा अंक-३५५०) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete

  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.....18 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद मैम। सादर नमन।

      Delete