कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

10 January 2019

गरिमा का अपमान करोगे

गरिमा का अपमान करोगे

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मूर्खों को अभिशापित कर के, गरिमा का अपमान करोगे,
हिंसक बनकर परम तपस्वी, हिंसा का सम्मान करोगे।

बन वशिष्ठ गुरुकुल में अब भी
नृप नंदन को ज्ञान बाँटते,
कहो महा ऋषि नैतिकता का
मान, प्रथा को दे सकते हो?
दुराचार के सम्मुख रण में
शैलखंड से अविचल हर क्षण,
गाधि तनय कह दो अब भी क्या
दुर्विचार से लड़ सकते हो?

ऐसा भी गर किये देव हे!
भीड़तंत्र संज्ञान करेगी।

मूढ़ों को समझाकर क्या अब, धरती का कल्याण करोगे?
मूर्खों को अभिशापित कर के, गरिमा का अपमान करोगे।

तप के बल पर, सत्य मार्ग में
अविलंबित, गुरुकुल के पालक,
प्रजा हेतु क्या कुशल धनुर्धर
इस वसुधा को दे सकते हो?
अटकावों से बिना डरे ही
बुद्धिमान! सच-सच कह दो क्या,
न्याय डगर पर बिना डरे ही
सत्य हेतु तुम मिट सकते हो?

साहस ही यदि करो वर्ण्य का,
पूरी सभा विरोध करेगी।

द्वेष विमुख होकर वैरागी! शासन का अवसान करोगे?
मूर्खों को अभिशापित कर के, गरिमा का अपमान करोगे।

चारो वेद, पुराणों में भी
विद्वानों को श्रेय मिला है,
और कुशल को, कौशल ख़ातिर
आसमान सा ध्येय मिला है;
स्वयं साक्ष्य बन व्योम खड़ा है
निर्विकार इक उपकारी सा,
फिर भी भू पर ज्ञानीजन की
गुरुता को बस खेद मिला है;

व्याख्यान से बदलोगे तो,
नर-पशुता अवरोध करेगी।

हे तत्वज्ञ! पापों का महि पर, बोलो अहं निदान करोगे?
मूर्खों को अभिशापित कर के, गरिमा का अपमान करोगे।
...“निश्छल”

14 comments:

  1. हे तत्वज्ञ! पापों का महि पर, बोलो अहं निदान करोगे?
    मूर्खों को अभिशापित कर के, गरिमा का अपमान करोगे।
    गहन चिंतन से भरी बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद एवं सादर आभार आदरणीय🙏🙏🙏

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार १३ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. रचना की महत्ता को बढ़ाने के लिए सादर आभार आपका🙏🙏🙏

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  3. बहुत खूब........आदरणीय
    बेहतरीन।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय🙏🙏🙏

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  4. वाह!! निशब्द!
    मूर्खों को अभिशापित... कमाल सोच कमाल काव्य संरचना।
    अप्रतिम अद्भुत बेजोड़।

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  5. बेहतरीन रचना

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  6. मूर्खों को अभिशापित कर के, गरिमा का अपमान करोगे,
    हिंसक बनकर परम तपस्वी, हिंसा का सम्मान करोगे।
    बहुत गहरा चिंतन...... सादर नमन

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    1. हृदयतल से आभार आदरणीया🙏🙏🙏

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  7. आदरणीय निश्छल जी ज़बाब नहीं आप की लेखनी का काफ़ी दिनों से सोच रही थी आप की रचना पढ़ने की ,बहुत प्रेणादायक है आप की लेखनी
    सादर

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    1. सादर धन्यवाद आदरणीया🙏🙏🙏

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