कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

19 January 2019

वसंत की याद

वसंत की याद
✒️
अक्षुण्ण यौवन की सरिता में,
पानी का बढ़ आना
कमल-कमलिनी रास रचायें,
खग का गाना गाना;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे।

नाद लगाई पैंजनियों ने,
चिट्ठी की जस पाती
झनक-झनक से रति शरमायी,
तितली गाना गाती;
जगमग-जगमग दमक उठा जब,
रवि किंशुक कुसुमों सा
मानस, आभामंडित होकर,
धवल नीर बन बरसा;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे।

कुछ, ऐसी किरणें लेकर तब,
ऋतु बसंत का आना
पोर-पोर में दर्द मधुर सा,
आतप का सकुचाना;
हर्षित कोंपल, मुकुल सौरभित,
हुवे जीव-वश ऐसे
मन-मृणाल, रस अब टपकाता,
मस्त गजों के जैसे;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे।
...“निश्छल”

10 comments:

  1. नाद लगाई पैंजनियों ने,
    चिट्ठी की जस पाती
    झनक-झनक से रति शरमायी,
    तितली गाना गाती;
    जगमग-जगमग दमक उठा जब,
    रवि किंशुक कुसुमों सा
    मानस, आभामंडित होकर,
    धवल नीर बन बरसा;
    याद किया जब बैठ शैल पर,
    तालाबों के तीरे
    मौसम ने ली हिचकी उठकर,
    नंदनवन में धीरे...
    बसंत का सजीव वर्णन । पढते-पढते लगा ज्यूं सचित्र रचना किसी नें आँखो के आगे रख दी हो। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय अमित निश्छल जी। शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सधन्यवाद नमन आदरणीय🙏🙏🙏

      Delete
  2. अद्भुत... अद्भुत.... विस्मित हो गये पढ़कर..लय ताल छंद से परिपूर्ण... मनमोहक सृजन अमित जी।
    बधाई आपकी लेखनी मंत्रमुग्ध कर जाती है..।
    शुभकामनाएँ लिखते रहिये ऐसी ही रचनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार मैम नमन🙏🙏🙏

      Delete
  3. कुछ, ऐसी किरणें लेकर तब,
    ऋतु बसंत का आना
    पोर-पोर में दर्द मधुर सा,
    आतप का सकुचाना
    बेहतरीन...... ,बहुत प्यारी रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर शुक्रिया आदरणीया🙏🙏🙏

      Delete
  4. सुंदर प्रस्तुति
    मौसम ने ली हिचकी
    उठकर नंदनवन में धीरे

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार मैम🙏🙏🙏

      Delete
  5. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया🙏🙏🙏

      Delete