वसंत की याद
✒️अक्षुण्ण यौवन की सरिता में,
पानी का बढ़ आना
कमल-कमलिनी रास रचायें,
खग का गाना गाना;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे।
नाद लगाई पैंजनियों ने,
चिट्ठी की जस पाती
झनक-झनक से रति शरमायी,
तितली गाना गाती;
जगमग-जगमग दमक उठा जब,
रवि किंशुक कुसुमों सा
मानस, आभामंडित होकर,
धवल नीर बन बरसा;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे।
कुछ, ऐसी किरणें लेकर तब,
ऋतु बसंत का आना
पोर-पोर में दर्द मधुर सा,
आतप का सकुचाना;
हर्षित कोंपल, मुकुल सौरभित,
हुवे जीव-वश ऐसे
मन-मृणाल, रस अब टपकाता,
मस्त गजों के जैसे;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे।
...“निश्छल”
नाद लगाई पैंजनियों ने,
ReplyDeleteचिट्ठी की जस पाती
झनक-झनक से रति शरमायी,
तितली गाना गाती;
जगमग-जगमग दमक उठा जब,
रवि किंशुक कुसुमों सा
मानस, आभामंडित होकर,
धवल नीर बन बरसा;
याद किया जब बैठ शैल पर,
तालाबों के तीरे
मौसम ने ली हिचकी उठकर,
नंदनवन में धीरे...
बसंत का सजीव वर्णन । पढते-पढते लगा ज्यूं सचित्र रचना किसी नें आँखो के आगे रख दी हो। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय अमित निश्छल जी। शुभकामनाएं ।
सधन्यवाद नमन आदरणीय🙏🙏🙏
Deleteअद्भुत... अद्भुत.... विस्मित हो गये पढ़कर..लय ताल छंद से परिपूर्ण... मनमोहक सृजन अमित जी।
ReplyDeleteबधाई आपकी लेखनी मंत्रमुग्ध कर जाती है..।
शुभकामनाएँ लिखते रहिये ऐसी ही रचनाएँ।
सादर आभार मैम नमन🙏🙏🙏
Deleteकुछ, ऐसी किरणें लेकर तब,
ReplyDeleteऋतु बसंत का आना
पोर-पोर में दर्द मधुर सा,
आतप का सकुचाना
बेहतरीन...... ,बहुत प्यारी रचना
सादर शुक्रिया आदरणीया🙏🙏🙏
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमौसम ने ली हिचकी
उठकर नंदनवन में धीरे
बहुत बहुत आभार मैम🙏🙏🙏
Deleteवाहहहह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया🙏🙏🙏
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