कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

17 August 2019

क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं?

क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं?
✒️
हारता, हालात से
अब क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं?
गर नहीं लायक तुम्हारे,
बोझ फिर क्यों ढो रही हो?
या मुकद्दर पर तरस खा
थक गयी हो, सो रही हो?

मन मसोसे हूँ युगों से, उम्र के इस, द्वार पर मैं
यह प्रतीक्षा कब ठहरकर, राह देगी चेतना को?
है नहीं दुर्भाव तुमसे, मैं कहाँ जीवित यहाँ हूँ?
दोष भी देता नहीं हूँ, उस बेचारी वेदना को।

मान मत जाना बुरा तुम, कुछ कसीदे पढ़ रहा हूँ
बात तबतक ही करूँगा, साँस जब तक ले रहा हूँ।
या मेरी मक्कारियों से, तिलमिलाकर रुष्ट हो तुम
या नहीं अस्तित्व से मेरे, बड़ी आक्रुष्ट हो तुम?


गर कथन यह सत्य है तो,
बोझ फिर क्यों ढो रही हो?
या मुकद्दर पर तरस खा
थक गयी हो, सो रही हो?
हारता, हालात से
अब क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं?
क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं...?
क्या कहूँ ऐ ज़िंदगी मैं?
...“निश्छल”

10 comments:

  1. हृदयस्पर्शी रचना अनुज |
    पहली बार आप की रचना में नैराश्य का भाव देख रही हूँ |परन्तु रचना लाज़बाब है |कुछ मैं कहना चाहूँगी |
    क्यों हार मानना इस ज़माने से,
    जंग करेगें ताउम्र किसी न किसी बहाने से,
    ज़ख्म सजा लेगे सीने पर वक़्त की शे से
    ज़िंदगी को फिर महका देगें अपने ही अंदाज़ से |
    सादर


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    1. हार्दिक आभार दीदी। नमन। वंदन।
      प्रत्येक जीवित शरीर, वक्त और परिस्थितियों के वश में होती है। ऐसे में अनुकूल/प्रतिकूल घटनाक्रम के आने पर प्रतिक्रियायें अनिवार्य हैं।
      प्रतिक्रिया रहित तो जीव विहीन (निर्जीव) हहोथा है, दूसरे शब्दों निरंकार (ब्रह्म/ईश्वर)।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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    1. सधन्यवाद नमन मैम। आभारी हूँ।

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विराट व्यक्तित्व नेता जी की रहस्यगाथा : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  4. बहुत खूब प्रिय अमित , आपके अपने अंदाज में उत्कृष्ट सृजन !!!! जिन्दगी को मार्मिकता से भरपूर उद्बोधन एक मधुर और भावपूर्ण रचना में ढल गया है |लिखते रहिये और अद्भुत सृजन करते रहिये \ हार्दिक स्नेह आपके लिए |

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  5. बहुत खूब ...
    खुद से थके हुए या जीवन की आपाधापी में थके निराशा के भाव ... जिन्दगी के माध्यम से खुद किये कुछ प्रश्न ...उत्तर स्वयं ही मिल जाते हैं इस दौर में ...
    गहरे भाव ...

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  6. ...बहुत ही सुन्दर सार्थक

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