रे मुझे बना दे कवि कोई...
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मुझे बना दे कवि कोई
निशिदिन उसका गुणगान करूँ।
भजूँ दिवस में उसे
रैन में कविता का विषपान करूँ।।
रे मुझे बना दे कवि कोई...
आसार नहीं, कर पाऊँगा
अब मंत्रमुग्ध भावी जन को,
पठनीय काव्य-मंगलघट से
भर दे कोई मैले मन को।
क्षणिक हँसी है ओठों पर, क्षण-क्षण उर में अज्ञान भरूँ।
मुझे बना दे कवि कोई, निशिदिन उसका गुणगान करूँ।।
मत प्रश्न पूछ मेरे भाई
ओ मीत! पिटारे बंद करो,
जो इक संगीत न गा पाये
तत्काल गिटारें बंद करो।
रागों का प्रथम प्रवाहक, ध्वनि में विद्युत संधान करूँ।
मुझे बना दे कवि कोई, निशिदिन उसका गुणगान करूँ।।
क्या लिख लेने से नाम तले
'कवि' किंचित एक सियाही से,
पा जाता कवि ऐश्वर्य-अमर
श्रोताओं की अगुआई से?
मौलिक यह प्रश्न अधर पर ले, मैं शत-शत सागर पान करूँ।
मुझे बना दे कवि कोई, निशिदिन उसका गुणगान करूँ।।
भजूँ दिवस में उसे, रैन में कविता का विषपान करूँ।
रे मुझे बना दे कवि कोई...।।
...“निश्छल”
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद मैम।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-3-22) को "महिला दिवस-मौखिक जोड़-घटाव" (चर्चा अंक 4363)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आभार मैम।
Deleteवाह! सुंदर सृजन हल्का व्यंग्य , सुंदर शब्द समायोजन।
ReplyDeleteनिथरे भाव।
बहुत अच्छी कवि की अभिलाषा कवि बनने की
ReplyDeleteसादर नमन मैम।
Deleteबहुत सुंदर और प्रभावी सृजन
ReplyDeleteसर धन्यवाद।
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