कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

01 August 2021

यह वसंत की उपमा आई


 यह वसंत की उपमा आई

✒️

भावों को अनुवादित करके, वर्णों से संबोधित कर

मन-मानस में बसी आपकी, स्मृतियों को सुनियोजित कर।

रचता रहा विमल संबोधन, निशि के घने ठिकानों में

मधुर रागिनी गूँज रही थी, रिमझिम-रिमझिम कानों में।।


बूँद-बूँद में घोर घटा, आवेशित हो लय-ताल से

प्रथम प्रणय की केलि सुधामय, उद्धृत हो शशिकाल से।

नीम निशा के यौवन पर, न्योछावर एक मराल सा

अनुरागी बन रचा छंद, मंजुल प्रमदा के भाल सा।।


ओढ़ उपरना उस वेला में, सुंदरता प्रतिमान हो

शब्द-शब्द अक्षर-अक्षर में, विदित प्रेम का भान हो।

द्रवित चक्षु के ऊष्ण नीर को, पावन कर आवाज़ से

तुम्हीं दिखाती रहीं राह, निस्तब्ध हृदय को साज़ से।।


यादों की माला जपता, संयासी यह अभिराम सा

युगल नैन की सुषमा गाता, समाधिस्थ अविराम सा।

पढ़-पढ़कर संतृप्त हो गया, तुम्हें अयन के छोर से

यह वसंत की उपमा आई, आज तुम्हारी ओर से।।

...निश्छल

5 comments:

  1. एक से बढकर एक अतुलनीय बिंब से सुशोभित
    ओढ़ उपरना उस वेला में, सुंदरता प्रतिमान हो

    शब्द-शब्द अक्षर-अक्षर में, विदित प्रेम का भान हो।
    द्रवित चक्षु के ऊष्ण नीर को, पावन कर आवाज़ से
    तुम्हीं दिखाती रहीं राह, निस्तब्ध हृदय को साज़ से।।


    वाह... अनुपम,अद्भुत, अति मनमोहक सृजन अमित जी।
    लंबे अंतराल पर आपकी पुनः उपस्थिति पाकर एवं आपकी शैली में रची रचना पढकर अच्छा लग रहा।
    कृपया निरंतरता बनाये रखिएगा।

    सादर

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  2. बड़ा मधुर है ये विमल संबोधन ।

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  3. बेहद सुंदर कृति

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  4. खूबसूरत रचना

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  5. प्रकृति और श्रृंगार का अनूठा काव्य! रस धारा प्रवाहित हो रही है हर शब्द से ।
    बहुत सुंदर सरस सृजन ।

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