कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

05 December 2019

व्यवस्था

व्यवस्था
✒️
कुछ सितारे हैं कुपोषित, और कुछ लाचार से हैं
क्या गगन की यह व्यवस्था, न्याय का अपवाद है?

वह छिपाकर चार किरणें, रात में जगता अकेला
बाँटता है चाँदनी की, सृष्टि को अनमोल बेला;
खिलखिलाता रातभर यों, व्योम के आगोश में शशि
चंद्र की मुख-भंगिमा क्या, श्रांति का अवसाद है?

नापकर अपने वलय को, तेज को प्रतिपल बढ़ाता
ज्योति देता है जगत को, साथ में जलता-जलाता;
हैं प्रखरतम रूप रवि के, सांध्य, ऊषा या दिवस हो
क्या प्रकीर्णित तेज करना, मूढ़ता निर्बाध है?

छेंक लेता नभ-अयन को, रोकता है सूर्य आतप
गर्जना घन, घोर करता, वृष्टि करता है निरातप;
रूप अगणित हैं अनूठे, विश्व को गतिमान रखता
आर्द्र होना क्या भुवन में, अति घृणित अपराध है?
...“निश्छल”

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह,
    लाजवाब लिखा है आपने।

    पधारें मेरा शुरुआती इतिहास

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  3. बहुत सुंदर अभिनव सृजन ।

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  4. वाह!!अमित जी ,बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
    सही में आर्द्र ह़ोना अपराध सा ही लगता है ...पर क्या हो जिसका जैसा स्वभाव ,लाख कोशिशों के बाद भी बदलता नहीं ।

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    1. सत्य वचन मैम। सादर नमन।

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