कैसे कटती होंगीं
✒️जिन रातों के हिस्से कोई चाँद नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?
सच कहते हैं जीवन केवल
परिधानों का सौदा है,
जनम-मरण का घेरा यह तो
बेबस एक घरौंदा है।
जिन साँसों के हिस्से पालनहार नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?
दलबदलू बदनाम जगत में
मगर, छली हर बंदा है,
हीरों का हो दुर्ग बड़ा सा
सबका गोरखधंधा है।
जिन आँखों के हिस्से कोई स्वप्न नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?
कर्म विशिष्ट, तथापि देखकर
उड़ते पुच्छल - तारों से
आसमान में देखा, सूरज
जलता चाँद - सितारों से।
जिन रातों के हिस्से कोई चाँद नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?
...“निश्छल”
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमन एवं आभार मैम।
Deleteदलबदलू बदनाम जगत में
ReplyDeleteमगर, छली हर बंदा है,
हीरों का हो दुर्ग बड़ा सा
सबका गोरखधंधा है। बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
हार्दिक आभार मैम।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसर धन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-11-2019) को "कंस हो गये कृष्ण आज" (चर्चा अंक 3530) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीय रवींद्र सर, सादर नमन। आभारी हूँ।
Deleteसही कहा सबके हिस्से सब कुछ नहीं आता है चांद पर हक है सिर्फ रात का लेकिन कभी-कभी चांद भी रात को अकेला छोड़ देता है बहुत ही गहरे विचार डाले हैं अपनी इस कविता में.. हर चीज में स्वार्थ छिपा हुआ है बहुत ही अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteसधन्यवाद नमन मैम। इस काव्य की गहनता को समझने और व्यक्त करने के लिए आपका आभारी हूँ।
Deleteवाह ... बहुत प्रभावी गेयता है अंत तक ...
ReplyDeleteगहरे अर्थ समेटे है हर छंद ...
सधन्यवाद नमन सर। सादर आभार।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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