कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

21 November 2019

सुधर जाओ

#सुधर_जाओ
हवा को बदलने की कोशिश करेंगे
पीने के पानी को शोषित करेंगे,
कैशबैक मिल जाए थोड़ा अगर तो
प्रदूषण हटाने को बोधित करेंगे।
.
इन उल्टी-सीधी पंक्तियों के लिए क्षमा कीजिएगा। यह कटाक्ष यों ही नहीं लिख रहा हूँ। हम इंसानों के तो जीन में है कि जबतक अपना फ़ायदा न हो, कुछ भी नहीं करना। यकीन मानिए अगर आज विज्ञान यह कह दे कि मोटापा बढ़ाने से उमर बढ़ती है, या जो जितना मोटा होगा, उसे उतना ज़्यादा मोटापा पेंशन मिलेगा (यह एक उदाहरण मात्र है), तो एक होड़ सी लग जाएगी मोटा होने के लिए। मतलब, मतलबी इंसान अपने लाभ के लिए कुछ भी करने को तत्पर है।
#एक_पेड़_की_कमी_को_हजार_पौधे_भी_पूरा_नहीं_कर_सकते। फिर भी हजारों पेड़ [कभी विकास के नाम पर, तो कभी पिशाच(बुरी भावना) के नाम पर] काटने के बाद चंद पौधे लगाकर हम प्राउड फ़ील करते हैं/सोशल मीडिया पर अपडेट करते हैं।
यहाँ बात सिर्फ़ पेड़ काटने तक ही सीमित नहीं है, #मानव_सभ्यता_के_विकास_का_हरेक_कदम_प्रकृति_और_प्राकृतिक_संसाधनों_को_नुकसान_पहुँचाता_है (ऐसा मेरा मानना है)। अगर मैं गलत सोच रहा हूँ तो निश्चित रूप से इतने सभ्य और अत्याधुनिक समाज में प्रदूषण को लेकर बहस/रोना नहीं होना चाहिए।
#प्रकृति_माँ (कुदरत) के लिए उसकी हर संतान बराबर है। मतलब, एक इंसान के जान की कीमत सही मायनों में एक शेर/हाथी/पक्षी/साँप/कुत्ता/बिल्ली/... इत्यादि के समान ही होती है (ये बात अलग है कि इंसान अपनी महत्वाकांक्षा और अहं के रहते यह बात मान ही नहीं सकता)।
आजकल की परिस्थितियों में जहाँ प्रकृति को नष्ट कर देने के लिए हम उद्यत हैं, बेगुनाह जीव/जंतुओं के बारे में सोचकर रोना आ जाता है। अरे, उन्हें तो अपनी नाक पर रूमाल बाँधनी भी नहीं आती, मास्क भी वितरित कर दिये जायें तो क्या फ़ायदा? इस हालात में जब जानवरों को मास्क लगाना नहीं आता, नाक पर रूमाल नहीं बाँध सकते, तो क्या हमारा बालहठ करके यह साबित करना उचित होगा, कि उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान ख़ुद रखना चाहिए/ज़िंदगी उनकी है, उन्हें इसके बारे में सोचना चाहिए/इंसान अपने बुद्धिबल से प्रतिभावान और सशक्त बना है ऐसे में जानवरों की गलती है कि वे अपनी मेधा शक्ति का विकास नहीं कर सके?
हमारा तर्क/कुतर्क जो भी हो, मगर मेरा प्रश्न यह है कि अत्याधुनिक महामानव को #प्राकृतिक_संपदाओं, (जिन पर सभी जीवों का समान अधिकार होना चाहिए) से खिलवाड़ करने की अनुमति किसने दिया?
.
कुल मिलाकर हम इंसान अपने किये हुए का ही भोग करेंगे। संभवतः, प्राकृतिक शोषण की कई सारी किस्तों को, जिन्हें हमारे पूर्वज अच्छी तरह से पूरा नहीं कर पाये थे, उन्हें हम पूरा करेंगे और अपनी भावी पीढ़ियों का संहार (बिना अपना हाथ लगाये) करेंगे।
...“निश्छल”

🌳#नोट:- यह लेख किसी भी प्रकार की पब्लिसिटी हेतु नहीं लिखा गया है। कृपया इसे #साझा_न_करें, यदि करना चाहते हैं, तो इसे पढ़ने के बाद उत्पन्न हुए मनोभावों से साक्षात्कार करें, उन्हें अपने जीवन में उतारें।🙏🏻।

10 comments:

  1. अमित भाई, बहुत ही सार्थक ढंग से आप अपनी बात हमारे सामने रखी। व्यंग्य के साथ हमारा मार्गदर्शन करने का भी बहुत बढ़िया प्रयास किया है आपने। प्रारंभ से ही मुझे प्रकृति से बेहद लगाव रहा है....और ऐसी तात्कालिक परिदृश्य को देखकर सच्च में बहुत दु:ख होता है। इसके बेहतरी के लिए मेरा प्रयास जरूर रहता है...चाहे वो प्रयास मेरा छोटा ही क्यों ना हो।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृलयतल से आभार एवं हार्दिक स्वागत सर। अति प्रसन्नता हुई अपने ही तरह का एक और इंसान देखकर। बेहतरी के प्रयास सदा बने रह़ें।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

      Delete
  2. कटते पेड़ और पर्यावरण पर स्पष्ट मंडराते खतरे पर तंज के साथ साथ बहुत सटीक मंतव्य देती उत्कृष्ट प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति आपकी

    ReplyDelete
  4. सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर धन्यवाद। "मकरंद" पर आपका हार्दिक स्वागत है।

      Delete