कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

20 May 2019

हार बैठा भाग्य मुझसे

हार बैठा भाग्य मुझसे
✒️
आज फिर चाँद, मेरे द्वार आया
आज फिर, आँसुओं ने गिड़गिड़ाया,
वो खुशी, जो माँग रखी थी युगों से
भाग्य लेकर, स्वयं मेरे द्वार आया।

जन्नतों की सैर ना चाहा कभी भी
ना कभी देवों से मैंने याचना की,
क्यों करूँगा वैर यम के दूत गण से?
मित्रवत ही साथ उनके साधना की;
क्या इसी को मानकर कुछ तथ्य ऐसे
दैव मुझ पर था बड़ा ही ज़ुल्म ढाया?
वो खुशी,...

भाग्य, मेरे कर्म की पुस्तक लिए,
चिढ़-चिढ़ बुझाता, प्रज्वलित थे जो दीये
अंशुमाली है खड़ा दरबार मेरे
अभय देता हूँ उसे शोभित किये;
खो गई क्या, जीर्ण पोथी भाग्य की अब?
उपक्रमों को और, या वह आजमाया?
वो खुशी,...

ज्योति जब परिधान पहने सप्तरंगी
आलना में झाँक मेरे, स्नेह बैठी,
अँगड़ाइयाँ लेकर उठा तब सुर्ख़ रवि
खेवटों की नाव देखे झील ऐंठी;
स्रवित करता चक्षुओं से, स्नेह वर्षण
सँवर कर उस भोर में पीयूष आया,
वो खुशी,...

बाँचता है रात को विस्तार देकर
तारकों के भाल पर तलवार लेकर,
मान बैठा था जिसे बिल्कुल निकम्मा
रौद्र धारण है किये, सम्मान देकर;
या, हुआ है गर्क, बेड़ा अर्क का अब
हार बैठा भाग्य मुझसे, या ख़ुदाया,
वो खुशी, जो माँग रखी थी युगों से
भाग्य लेकर, स्वयं मेरे द्वार आया।
...“निश्छल”

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