कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

19 May 2019

ऐ चंदा, मैं सारी उमर वारता हूँ

ऐ चंदा, मैं सारी उमर वारता हूँ
✒️
चाँद!
अब भी शिकायत करूँ एक तुमसे,
न झुँझलाकर मुझसे नज़र फेर लेना;
मुकद्दर कहो कौन पाये हो रब से?
मानूँ तो हीरा, न मानूँ, खिलौना।
अनुग्रह करो, या कर लो अवज्ञा,
उजले दीख पड़ते सदा ही गगन में;
क्या तारे खिले हैं तुम्हें देखकर यूँ?
या खिलते खड़े हो तुम्हीं उस चमन में?
नहीं दिल्लगी तुम इसे मान लेना,
मैं कह दूँ अगर, मत बुरा मान लेना;
ऐ चंदा, प्रखर धूप में मुँह छिपाये,
क्यों फिरते? न दिखते कहा मान लेना।
हूँ अचंभित नहीं, हरपल सालता हूँ,
दुआ में, तुम्हारी चमक माँगता हूँ;
जो कह दे मुझे दोस्त अपना पुराना,
ऐ चंदा, मैं सारी उमर वारता हूँ।

8 comments:

  1. बहुत खूब .....

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  2. हूँ अचंभित नहीं, हरपल सालता हूँ,
    तेरी दुआ की चमक माँगता हूँ;..वाह बहुत खूब

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    1. सादर अभिवादन एवं धन्यवाद मैम।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार मई 21, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत - बहुत धन्यवाद मैम।

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