धीर धरो हरदम रचनाओं
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नपे-तुले कदमों से चलकर,
पाठक मन में जाना कृतियों;
अल्हड़पन की आतुरता भी,
पीड़ा का अध्याय बनेगी।
नपे-तुले कदमों से चलकर,
पाठक मन में जाना कृतियों;
अल्हड़पन की आतुरता भी,
पीड़ा का अध्याय बनेगी।
तुम्हें सौंह है मनोभाव की
भूल न जाना गतियाँ अपनी,
व्याकुल मन की आकुलता में
तिरती रहतीं कृतियाँ जितनी,
चीख पड़ेंगीं आहत होकर
उत्कंठा, अभिशाप बनेगी।
भूल न जाना गतियाँ अपनी,
व्याकुल मन की आकुलता में
तिरती रहतीं कृतियाँ जितनी,
चीख पड़ेंगीं आहत होकर
उत्कंठा, अभिशाप बनेगी।
विकल हृदय को थाम खड़ा है
साधक, कठिन साधना करता,
विनययुक्त हो, त्याग धृष्टता
बौरयुक्त मन धीरज धरता,
धीर धरो हरदम रचनाओं
अक्षुण्णता वरदान बनेगी।
साधक, कठिन साधना करता,
विनययुक्त हो, त्याग धृष्टता
बौरयुक्त मन धीरज धरता,
धीर धरो हरदम रचनाओं
अक्षुण्णता वरदान बनेगी।
मद्धम-मद्धम पदचापों से
नाप-नापकर कदम बढ़ाना,
आशु श्रव्य गीतों की सरिता
हित साधक मत तुम बन जाना,
करतलध्वनि की परम लिप्तता
संहारक पर्याय बनेगी।।
नाप-नापकर कदम बढ़ाना,
आशु श्रव्य गीतों की सरिता
हित साधक मत तुम बन जाना,
करतलध्वनि की परम लिप्तता
संहारक पर्याय बनेगी।।
...“निश्छल”
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/05/2019 की बुलेटिन, " लिपस्टिक के दाग - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआदरणीय शिवम जी, सादर धन्यवाद।
Deleteनपे-तुले कदमों से चलकर,
ReplyDeleteपाठक मन में जाना कृतियों;
अल्हड़पन की आतुरता भी,
पीड़ा का अध्याय बनेगी।.....बेहतरीन सृजन आदरणीय
सादर
सधन्यवाद नमन मैम।
Deleteकृतियाँ धीरे उतरे तो देर तक पढ़ी जायें...
ReplyDeleteसार्थक रचना!
जी, सादर नमन। हार्दिक अभिनंदन है आपका "मकरंद" पर।
Deleteवाह!सुंदर और सटीक !
ReplyDeleteधन्यवाद मैम।
Deleteबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय।
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