कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

04 April 2019

चाँदी से नगमे

चाँदी से नगमे
✒️
लिखता रहा चंद, चाँदी से नगमे,
उन्हें चाँदनी गुनगुनाती रही थी;
प्रखर रूप धर चाँद, पल-पल निहारे,
धरा मंद गति मुस्कुराती रही थी।
अकिंचन बना नाम रति का ज़मीं पर,
सितारों की थाली सजाती रही थी;
मोती से जगमग करें दंत उसके,
रजनी नज़र बस चुराती रही थी।
...“निश्छल”

10 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. क्या बात है। चंद पंक्तियों में आपने संसार का अलौकिक दर्शन करवा दिया। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय अमित निश्छल जी।

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  3. वाह! क्या कहने..
    बहुत बहुत सुन्दर रचना.....

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    1. जी सादर नमन। हार्दिक स्वागत है आपका “मकरंद” पर।

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण ... जगत का सार इन पंक्तियों में ...

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  5. क्या बात है प्रिय अमित आपकी सुंदर चांदनी सी झरती पंक्तियों में वो रस है जिसके लिए सराहना नहीं बस एक दुआ -- तुम्हारी कलम को माँ शारदे बुरी नजर से बचाए | सस्नेह शुभकामनायें |

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    1. आपके शुभाशीष ही हैं जो अलग-अलग रूपों में फल-फूल रहे हैं। सादर अभिवादन दीदी🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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