लोलुप चाँद
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अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
निस्तेज, चाँद का मुखड़ा
और मलिन था अंतर्मन,
इसी बात का शिकवा था
जलता रहता उसका तन;
बादल की राजसभा में
चंदा गृहभेदी बनकर,
कुंठित मन में उसके थी
तृष्णा कहीं व्यथित होकर।
जैसे बादल बिजली धरता, ओज चंद्र को धरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
रवि किरणें, धारण करता
चंद्र मगर आकांक्षी था,
यही चाँद की गलती थी
चंदा ओपाकांक्षी था;
हेम फुहारे, रजनी भर
धरती हर्षित हो जाती,
किंतु मेघ को यह सहमति
फूटी आँख नहीं भाती।
कीमत सारी, संबंधों की, कमजोरी को भरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
मेघराज ने कान भरे
आख़िर इसी बिमारी पर,
खीज उठा, चाँद युगों से
अपनी ही लाचारी पर;
कुपित चाँद था, बरस पड़ा
अपने दुर्व्यवहारों से,
आस लगी, तथा भानु को
टिमटिम करते तारों से।
अपने ही, घर फूँक चले, आरोप चंद्र को हरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
शिलाखंड पर सबने मिल
आरोपों को छपवाया,
दुखी हुआ मन पत्थर का
दुर्गुण ऐसा लिखवाया;
सारे वैरी एक हो गए
उद्विग्न और, बेकार से,
गिरा सिंधु में, धक्के खा
सूरज, शून्यविहार से।
चंदा सम्मुख तारों को भी, शीश नतन अब करने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
...“निश्छल”
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेघराज ने कान भरे
ReplyDeleteआख़िर इसी बिमारी पर,
खीज उठा, चाँद युगों से
अपनी ही लाचारी पर;...बेहतरीन आदरणीय
सादर
सादर धन्यवाद मैम
Deleteबहुत ही शानदार लाजवाब रचना...
ReplyDeleteवाह !!!!
सधन्यवाद आभार मैम
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (7 -04-2019) को " माता के नवरात्र " (चर्चा अंक-3298) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
अनीता सैनी
हार्दिक आहार आदरणीया
Deleteएक अलग तरह के भाव ... बहुत प्रभावी ...
ReplyDeleteअन्धकार के गौरव को सूर्य के प्रकाश से गढ़ने का प्रयास ... लाजवाब रचना ...
सधन्यवाद नमन सर। बहुत अच्छा लगा "मकरंद" पर आपको देखकर🙏🏻
Deleteप्रिय अमित -- आभा लोलुप चाँद , भानु तारों ,धरती और मेध के साथ तुमने वो विहंगम कथा चित्र रचा है कि मुझे प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे | सब का मानवीकरण कर एक बहुत ही शानदार रचना लिख दी हमेशा की तरह --
ReplyDeleteकितना सुंदर चित्र सजा है प्रत्येक पंक्ति में | काव्यरस सुधा सा !!!
मेघराज ने कान भरे
आख़िर इसी बिमारी पर,
खीज उठा, चाँद युगों से
अपनी ही लाचारी पर;
कुपित चाँद था, बरस पड़ा
अपने दुर्व्यवहारों से,
आस लगी, तथा भानु को
टिमटिम करते तारों से।
अपने ही, घर फूँक चले, आरोप चंद्र को हरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।!!
सराहना से परे इस रचना के लिए बस मेरा हार्दिक स्नेह और शुभकामना | ये लेखनी और प्रखर हो !!
हृदयगर्त से आभार एवं नमन दीदी🙏🏻
Deleteनि:शब्द हूँ क्या लिखूं । बेहतरीन लेखन शैली।
ReplyDeleteसादर शुक्रिया सर🙏🏻
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक अभिनंदन दीदी। यह कविता धन्य हो गई।
Deleteबहुत सुन्दर 👌
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया।
Deleteक्या लिखें! बस, निःशब्द हूँ!!!!
ReplyDeleteसर नमन।
Deleteवाह बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार मैम।
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