कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

04 April 2019

लोलुप चाँद

लोलुप चाँद
✒️
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।

निस्तेज, चाँद का मुखड़ा
और मलिन था अंतर्मन,
इसी बात का शिकवा था
जलता रहता उसका तन;
बादल की राजसभा में
चंदा गृहभेदी बनकर,
कुंठित मन में उसके थी
तृष्णा कहीं व्यथित होकर।
जैसे बादल बिजली धरता, ओज चंद्र को धरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।

रवि किरणें, धारण करता
चंद्र मगर आकांक्षी था,
यही चाँद की गलती थी
चंदा ओपाकांक्षी था;
हेम फुहारे, रजनी भर
धरती हर्षित हो जाती,
किंतु मेघ को यह सहमति
फूटी आँख नहीं भाती।
कीमत सारी, संबंधों की, कमजोरी को भरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।

मेघराज ने कान भरे
आख़िर इसी बिमारी पर,
खीज उठा, चाँद युगों से
अपनी ही लाचारी पर;
कुपित चाँद था, बरस पड़ा
अपने दुर्व्यवहारों से,
आस लगी, तथा भानु को
टिमटिम करते तारों से।
अपने ही, घर फूँक चले, आरोप चंद्र को हरने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।

शिलाखंड पर सबने मिल
आरोपों को छपवाया,
दुखी हुआ मन पत्थर का
दुर्गुण ऐसा लिखवाया;
सारे वैरी एक हो गए
उद्विग्न और, बेकार से,
गिरा सिंधु में, धक्के खा
सूरज, शून्यविहार से।
चंदा सम्मुख तारों को भी, शीश नतन अब करने होंगे;
अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।
...“निश्छल”

21 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. मेघराज ने कान भरे
    आख़िर इसी बिमारी पर,
    खीज उठा, चाँद युगों से
    अपनी ही लाचारी पर;...बेहतरीन आदरणीय
    सादर

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  3. बहुत ही शानदार लाजवाब रचना...
    वाह !!!!

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  4. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (7 -04-2019) को " माता के नवरात्र " (चर्चा अंक-3298) पर भी होगी।

    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

    अनीता सैनी

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    1. हार्दिक आहार आदरणीया

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  5. एक अलग तरह के भाव ... बहुत प्रभावी ...
    अन्धकार के गौरव को सूर्य के प्रकाश से गढ़ने का प्रयास ... लाजवाब रचना ...

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    1. सधन्यवाद नमन सर। बहुत अच्छा लगा "मकरंद" पर आपको देखकर🙏🏻

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  6. प्रिय अमित -- आभा लोलुप चाँद , भानु तारों ,धरती और मेध के साथ तुमने वो विहंगम कथा चित्र रचा है कि मुझे प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे | सब का मानवीकरण कर एक बहुत ही शानदार रचना लिख दी हमेशा की तरह --
    कितना सुंदर चित्र सजा है प्रत्येक पंक्ति में | काव्यरस सुधा सा !!!
    मेघराज ने कान भरे
    आख़िर इसी बिमारी पर,
    खीज उठा, चाँद युगों से
    अपनी ही लाचारी पर;
    कुपित चाँद था, बरस पड़ा
    अपने दुर्व्यवहारों से,
    आस लगी, तथा भानु को
    टिमटिम करते तारों से।
    अपने ही, घर फूँक चले, आरोप चंद्र को हरने होंगे;
    अंधकार के गौरव के, गुणगान सूर्य को करने होंगे।!!
    सराहना से परे इस रचना के लिए बस मेरा हार्दिक स्नेह और शुभकामना | ये लेखनी और प्रखर हो !!

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    1. हृदयगर्त से आभार एवं नमन दीदी🙏🏻

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  7. नि:शब्द हूँ क्या लिखूं । बेहतरीन लेखन शैली।

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  8. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना गुरुवार २५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    Replies
    1. हार्दिक अभिनंदन दीदी। यह कविता धन्य हो गई।

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  9. क्या लिखें! बस, निःशब्द हूँ!!!!

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  10. वाह बहुत ही बेहतरीन रचना

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