सुनो तितलियों, गाना गाओ
✒️मधुकर रूठ गया है मुझसे, कैसे पास बुलाऊँ?
सुनो तितलियों, गाना गाओ, मन को कुछ बहलाऊँ।
सुकुमार सुमन इस उपवन का, पंखुड़ियाँँ रंगीली।
उद्विग्न भाव से उबल रहीं, चूल्हे रखी पतीली।
स्नेहिल दृग मुझ पर भी डालो, विह्वल मैं हो जाऊँ।
चंचरीक की बात निराली, पास रहे तो रूखा।
दूर गया तो मलिन हुआ मन, दर्शन को ही भूखा।
प्यास, हिया की बहुत कुटिल है, कैसे इसे बुझाऊँ?
ऊपर चढ़ता जाता सूरज, आसमान की सीढ़ी।
जलन बढ़ाये चैत्रमास यह, याद दिलाये पीढ़ी।
मैं मतिमंद, हृदय के सारे, शीतल भाव लुटाऊँ।
गायन करना गीत न आता, मैंने सुना बहारों।
सूरत अपनी ज़रा दिखाओ, जुगनूँ के उजियारों।
गुंजन इक, अविराम मुझे दो, निरति समाधि लगाऊँ।
आ जायेगा मधुकर मेरा, चित्त चमन को भाता।
सुरभित दस दिक और पवन भी, घूमे फिर मदमाता।
साँसों में झंकार मुझे दो, विलसित उसे बनाऊँ।
सुनो तितलियों, गाना गाओ, मन को कुछ बहलाऊँ।
...“निश्छल”
बधाईयाँ बहुत बधाईयाँ अमित जी...हार्दिक शुभकामनाओं सहित। आपकी लेखनी से निकलने वाली साहित्य सुधा की बूँदें निश्चित ही बहुमूल्य धरोहर है..आपका अति आभार सृजनात्मकता की महक से मन सुवासित करते रहे।
ReplyDeleteआज के अंक के लिए आपका विशेष सृजन सराहनीय है।
लिखते रहे ऐसे ही।
इन अमूल्य स्नेहाशीषों के लिए हृदयतल से सादर आभार एवं नमन श्वेता जी🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-04-2019) को " बैशाखी की धूम " (चर्चा अंक-3304) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
सादर धन्यवाद मैम
Deleteसाँसों में झंकार मुझे दो, विलसित उसे बनाऊँ।
ReplyDeleteसुनो तितलियों, गाना गाओ, मन को कुछ बहलाऊँ ...
वाह बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण ... मधुकर के रूठने और तितलियों से आग्रह के बीच प्राकृति के सुन्दर बम संजोये हैं ...
सर नमन, धन्यवाद, आभार।
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया।
Deleteअनुपम अप्रतिम अद्भुत
ReplyDeleteकहां से उतरा ये पियुष घट।
इन्हीं आशीर्वचनों की कृपा है दीदी। सादर नमन।
Deleteबहुत सुंदर ,सादर नमस्कार आप को
ReplyDeleteनमन मैम। हार्दिक अभिनंदन।
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