चाँद की फ़सल (बालगीत)
✒️
शीतें बोता रहा चाँद निशि, तारे खिल्ली उड़ा रहे थे;
दिखा तर्जनी उस चंदा को, मर्यादाएँ झुठला रहे थे।
बेचैनी थी नादानी थी, शैतानी भी उकसाती थी;
टिमटिम तारों की आवाजें,चंदा को बस भटकाती थीं।
बच्चों के मुँह भी क्या लगना, चंदा शीतों को बोता था;
नील गगन में विचरण करके, श्वेत स्वप्न वह संजोता था।
शीतों को बो दिया चाँद ने, थी तारों में खलबली मची;
हँसी ठहाके छूटे आख़िर, अब जुगत ना उनकी एक बची।
इधर हवा से मिलकर चंदा, सारे नभ को सींच दिया था;
ना जाने कैसे उपवन भी, रात-रात में भींग गया था।
थका-थका सो गया चाँद फिर, स्वप्न सुनहरे बुनती रजनी;
उठकर बैठ गया ऊषा में, आनंदित थी सारी धरणी।
खुशी बाँटने को जब देखा, चाँद, सितारों का भी मुखड़ा;
तारे झट से ओझल हो गए, दिखता था बस उनका दुखड़ा।
उत्साहित सा चाँद फिरा फिर, सूरज सम्मुख जाकर बोला;
काटो सूरज फ़सल शीत की, बाँटेंगे हम दो - दो तोला।
...“निश्छल”
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शीतें बोता रहा चाँद निशि, तारे खिल्ली उड़ा रहे थे;
दिखा तर्जनी उस चंदा को, मर्यादाएँ झुठला रहे थे।
बेचैनी थी नादानी थी, शैतानी भी उकसाती थी;
टिमटिम तारों की आवाजें,चंदा को बस भटकाती थीं।
बच्चों के मुँह भी क्या लगना, चंदा शीतों को बोता था;
नील गगन में विचरण करके, श्वेत स्वप्न वह संजोता था।
शीतों को बो दिया चाँद ने, थी तारों में खलबली मची;
हँसी ठहाके छूटे आख़िर, अब जुगत ना उनकी एक बची।
इधर हवा से मिलकर चंदा, सारे नभ को सींच दिया था;
ना जाने कैसे उपवन भी, रात-रात में भींग गया था।
थका-थका सो गया चाँद फिर, स्वप्न सुनहरे बुनती रजनी;
उठकर बैठ गया ऊषा में, आनंदित थी सारी धरणी।
खुशी बाँटने को जब देखा, चाँद, सितारों का भी मुखड़ा;
तारे झट से ओझल हो गए, दिखता था बस उनका दुखड़ा।
उत्साहित सा चाँद फिरा फिर, सूरज सम्मुख जाकर बोला;
काटो सूरज फ़सल शीत की, बाँटेंगे हम दो - दो तोला।
...“निश्छल”
बेहतरीन
ReplyDeleteअप्रतिम अप्रतिम ......वाह भाई अमित जी वाह ...
ReplyDelete👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
काटो सूरज फसल शीत की
बांटेंगे हम दो दो तोला .....
कुछ तुम लेना धूप सरीखा
कुछ मैं लूंगा उजला उजला
पिता स्वेद बिंदू तुम रखना
माँ की लोरी में ले लूंगा !
बहुत खूब लिखा आप ने। लाजवाब ही लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना निश्छल जी
ReplyDeleteअद्भुत लाजवाब।
ReplyDeleteसुंदर बालगीत तिलिस्मी ।
वाह प्रिय अमित -- सुंदर कल्पना के उत्कर्ष को छूती रचना और इसमें व्याप्त काव्य कथ्य की जितनी तारीफ करूं उतनी कम है | मैं लाख चाहूं तो भी इतना उत्कृष्ट सृजन नहीं कर पाऊँगी | आपकी रचनाओं में चित्रात्मकता छायावादी कवियों की याद दिलाती है | उत्साही चाँद की इस सुंदर सलोनी कथा को गाती रचना के लिए आपकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करती हूँ | माँ सरस्वती आपके लेखन के प्रवाह को बाधित कभी ना होने दे | सस्नेह --
ReplyDeleteनिरुत्तर कर दिया मैम आपने... श्रद्धापूर्वक नमन😊🙏🙏🙏
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