कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

21 July 2018

सावन की गति

सावन की गति
✒️
नवरंग समाँ अब तान चला, बरसात नया चुपके - चुपके
अबकी बरखा सखि हूक उठे, लहरे मन में चुपके - चुपके;
डुबकी कहुँ लेत सुदेश उठे, जल, सावन में चुपके - चुपके
अभिनंदन में सिर डाल खड़ा, पिक वायस भी चुपके - चुपके।

जलमग्न हुआ घर गाँव जहाँ, कुश नार उगें चुपके - चुपके
चतुरंग उमंग चढ़ी मन में, अब बागन में चुपके - चुपके;
पनिहारिन गागर लेइ चली, सखि सावन में चुपके - चुपके
बरखा अनुरक्त हुआ मन है, सर ताल भरें चुपके - चुपके।

गहि हाथ बिसारि सुधी जन भी, चित चिंत्य तजें चुपके - चुपके
रमते फिरते मग प्रेम भरे, असु चातक के चुपके - चुपके;
अतिवृष्टि हुई जग चैन मिला, जब सावन में चुपके - चुपके
शुभ भोर भई ऋतु सावन की, निकला दिन भी चुपके - चुपके।

खलिहान बड़ा अब सून दिखे, स्वर भेक बजें चुपके - चुपके
खग वृक्ष दिखें अब तृप्त बड़े, घन कानन में चुपके - चुपके;
परिधान नवीन लपेट हवा, इक नज़्म पढ़े चुपके - चुपके
सुनि झूमि रहे नर नारि सभी, गति सावन में चुपके - चुपके।

निज रूप तजे अब चंद्र खड़ा, घन सावन में चुपके - चुपके
कहि कौन सके विरही जग में, निशि काट रहा चुपके - चुपके;
पिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
झुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके।
...“निश्छल”

9 comments:

  1. बेहतरीन रचना

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  2. बहुत ही सुंदर
    बेहतरीन रचना

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  3. वाह सुंदर अतिसुन्दर, छंद की गति मे मनोरम रचना सांगोपांग वर्णन सावन का चुपके चुपके अविस्मरणीय रचना शानदार शब्द संयोजन और अंलकार ।

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  4. वाह सुंदर अतिसुन्दर, छंद की गति मे मनोरम रचना सांगोपांग वर्णन सावन का चुपके चुपके अविस्मरणीय रचना शानदार शब्द संयोजन और अंलकार ।

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  5. अप्रतिम ...चुपके चुपके ....👏👏👏👏👏👏👏
    हिय भाव रचे सरसे सावन
    कवि भाव सजे चुपके चुपके
    शब्द रचे सब भाव विहंगम
    मसि राग बहे चुपके चुपके !

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  6. लाजवाब शब्द चयन और खूबसूरत एहसास। बहुत अच्छा लिखा आप ने। हृदयस्पर्शी

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  7. पिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
    झुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके
    बेहद खूबसूरत रचना

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  8. निज रूप तजे अब चंद्र खड़ा, घन सावन में चुपके - चुपके
    कहि कौन सके विरही जग में, निशि काट रहा चुपके - चुपके;
    पिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
    झुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके।--
    प्रिय अमित एक विरहणी के मन की व्यथा बहुत ही सार्थकता से लिखी आपने | चुपके -- चुपके ने रचना के सार और विस्तार को चार चाँद लगा दिए |सुंदर भाव स्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई | सस्नेह --

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    1. सादर आभार आपका आदरणीया🙏🙏🙏

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