सावन की गति
✒️
नवरंग समाँ अब तान चला, बरसात नया चुपके - चुपके
अबकी बरखा सखि हूक उठे, लहरे मन में चुपके - चुपके;
डुबकी कहुँ लेत सुदेश उठे, जल, सावन में चुपके - चुपके
अभिनंदन में सिर डाल खड़ा, पिक वायस भी चुपके - चुपके।
जलमग्न हुआ घर गाँव जहाँ, कुश नार उगें चुपके - चुपके
चतुरंग उमंग चढ़ी मन में, अब बागन में चुपके - चुपके;
पनिहारिन गागर लेइ चली, सखि सावन में चुपके - चुपके
बरखा अनुरक्त हुआ मन है, सर ताल भरें चुपके - चुपके।
गहि हाथ बिसारि सुधी जन भी, चित चिंत्य तजें चुपके - चुपके
रमते फिरते मग प्रेम भरे, असु चातक के चुपके - चुपके;
अतिवृष्टि हुई जग चैन मिला, जब सावन में चुपके - चुपके
शुभ भोर भई ऋतु सावन की, निकला दिन भी चुपके - चुपके।
खलिहान बड़ा अब सून दिखे, स्वर भेक बजें चुपके - चुपके
खग वृक्ष दिखें अब तृप्त बड़े, घन कानन में चुपके - चुपके;
परिधान नवीन लपेट हवा, इक नज़्म पढ़े चुपके - चुपके
सुनि झूमि रहे नर नारि सभी, गति सावन में चुपके - चुपके।
निज रूप तजे अब चंद्र खड़ा, घन सावन में चुपके - चुपके
कहि कौन सके विरही जग में, निशि काट रहा चुपके - चुपके;
पिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
झुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके।
...“निश्छल”
✒️
नवरंग समाँ अब तान चला, बरसात नया चुपके - चुपके
अबकी बरखा सखि हूक उठे, लहरे मन में चुपके - चुपके;
डुबकी कहुँ लेत सुदेश उठे, जल, सावन में चुपके - चुपके
अभिनंदन में सिर डाल खड़ा, पिक वायस भी चुपके - चुपके।
जलमग्न हुआ घर गाँव जहाँ, कुश नार उगें चुपके - चुपके
चतुरंग उमंग चढ़ी मन में, अब बागन में चुपके - चुपके;
पनिहारिन गागर लेइ चली, सखि सावन में चुपके - चुपके
बरखा अनुरक्त हुआ मन है, सर ताल भरें चुपके - चुपके।
गहि हाथ बिसारि सुधी जन भी, चित चिंत्य तजें चुपके - चुपके
रमते फिरते मग प्रेम भरे, असु चातक के चुपके - चुपके;
अतिवृष्टि हुई जग चैन मिला, जब सावन में चुपके - चुपके
शुभ भोर भई ऋतु सावन की, निकला दिन भी चुपके - चुपके।
खलिहान बड़ा अब सून दिखे, स्वर भेक बजें चुपके - चुपके
खग वृक्ष दिखें अब तृप्त बड़े, घन कानन में चुपके - चुपके;
परिधान नवीन लपेट हवा, इक नज़्म पढ़े चुपके - चुपके
सुनि झूमि रहे नर नारि सभी, गति सावन में चुपके - चुपके।
निज रूप तजे अब चंद्र खड़ा, घन सावन में चुपके - चुपके
कहि कौन सके विरही जग में, निशि काट रहा चुपके - चुपके;
पिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
झुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके।
...“निश्छल”
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
वाह सुंदर अतिसुन्दर, छंद की गति मे मनोरम रचना सांगोपांग वर्णन सावन का चुपके चुपके अविस्मरणीय रचना शानदार शब्द संयोजन और अंलकार ।
ReplyDeleteवाह सुंदर अतिसुन्दर, छंद की गति मे मनोरम रचना सांगोपांग वर्णन सावन का चुपके चुपके अविस्मरणीय रचना शानदार शब्द संयोजन और अंलकार ।
ReplyDeleteअप्रतिम ...चुपके चुपके ....👏👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteहिय भाव रचे सरसे सावन
कवि भाव सजे चुपके चुपके
शब्द रचे सब भाव विहंगम
मसि राग बहे चुपके चुपके !
लाजवाब शब्द चयन और खूबसूरत एहसास। बहुत अच्छा लिखा आप ने। हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteपिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
ReplyDeleteझुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके
बेहद खूबसूरत रचना
निज रूप तजे अब चंद्र खड़ा, घन सावन में चुपके - चुपके
ReplyDeleteकहि कौन सके विरही जग में, निशि काट रहा चुपके - चुपके;
पिय झाँकि रहे तुम क्या छुपके, हिय शूल चुभें चुपके - चुपके
झुकि जाय रहीं विरही अँखियाँ, तुम याद करो चुपके - चुपके।--
प्रिय अमित एक विरहणी के मन की व्यथा बहुत ही सार्थकता से लिखी आपने | चुपके -- चुपके ने रचना के सार और विस्तार को चार चाँद लगा दिए |सुंदर भाव स्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई | सस्नेह --
सादर आभार आपका आदरणीया🙏🙏🙏
Delete