अमित्राक्षर
(तारों का रस…)
✒️
देखकर तारकमय व्योम, एक संध्या, कविता ने कहा
ले चल बटोही सैर कराने सृष्टि की, मैं भी देखूँ जरा।
बाल्यमन विचरण किया…
हवा के पर लगाये उड़ चला
किलकारियाँ करता, कभी खेलता-उछलता
एक हवा से दूसरे पर फुदकता,
फूलों के सुगंध पर लेट, जरा सुस्ता के
मैं और मेरी कविता…
वट विटप पर्ण सान्निध्य में दावत मनाता
पीपल पत्रक के हिंडोले बनाता,
समस्त तरु पत्तियाँ और फूल सी उनकी रानियाँ
प्रसन्न हुईं मुस्का के, करतल - तालियाँ।
हवा भूचाल सी जब आयी
बदल करवट, ऐंठकर, उसने ली अंगड़ायी
छूकर धरा को चली, अट्टहास कर गगन में
संग कविता उड़ चला, उसको भरे अँकवार मैं,
मेघ के मेराज पर चढ़ता चला।।
मैं और मेरी कविता…
रास्ते की प्यास…
उचककर सीढ़ियों से बादल के, तारे कुछ तोड़े
तारों के निर्यास से बुझा तृषा को
परितोष हुआ बहुत और सोचा…
ले चलूँगा घूँट कुछ कुटुंब में
मैं और मेरी कविता…
पार पहुँचा क्षितिज के…
नूतन आयाम, परिवेश, नयी सी दुनिया
हर ओर मनोहर दृश्य, नयन अघाते नहीं थे,
शुभ्र चाँदनी पहरा दिये तालाब पर
निश्चल कमलिनी, शोभित होता यों मानसरोवर
बढ़ चला उदीची, जिधर देखी एक उदितयौवना।
जलक्रीड़ा किये बहु भाँति
छींटे उछाले मैं और ज्योत्स्ना
अनुराग पनपे पुष्पदल समुदाय से
सुधा पान करातीं कला-निधि की रश्मियाँ,
रुचिकर समाँ आसमाँ के दृष्टिगोचर
चित्त में कल्पित हुयी उद्भावना,
बसूँगा पार अब शृंगारहाट के मैं
कर सरोवर में परिणयन।।
मैं और मेरी कविता…
कुछ और उमाह बीते…
किरणों का स्पर्श,
ऊषा के आगमन का
पर हाय, भोर की किरण क्यों बेधती चली गयी
बूँद-बूँद गिर रही, मधुमयी, रस-भीजना
पुष्प रज टपक रहा,
भाव कुछ यों रचे मनसरस बीच में
धारण कर अमित अमिय, हो जाऊँ मैं अमिट
या कर दूँ अमर अपनी कविता।।
मैं और मेरी कविता…
...“निश्छल”
(तारों का रस…)
✒️
देखकर तारकमय व्योम, एक संध्या, कविता ने कहा
ले चल बटोही सैर कराने सृष्टि की, मैं भी देखूँ जरा।
बाल्यमन विचरण किया…
हवा के पर लगाये उड़ चला
किलकारियाँ करता, कभी खेलता-उछलता
एक हवा से दूसरे पर फुदकता,
फूलों के सुगंध पर लेट, जरा सुस्ता के
मैं और मेरी कविता…
वट विटप पर्ण सान्निध्य में दावत मनाता
पीपल पत्रक के हिंडोले बनाता,
समस्त तरु पत्तियाँ और फूल सी उनकी रानियाँ
प्रसन्न हुईं मुस्का के, करतल - तालियाँ।
हवा भूचाल सी जब आयी
बदल करवट, ऐंठकर, उसने ली अंगड़ायी
छूकर धरा को चली, अट्टहास कर गगन में
संग कविता उड़ चला, उसको भरे अँकवार मैं,
मेघ के मेराज पर चढ़ता चला।।
मैं और मेरी कविता…
रास्ते की प्यास…
उचककर सीढ़ियों से बादल के, तारे कुछ तोड़े
तारों के निर्यास से बुझा तृषा को
परितोष हुआ बहुत और सोचा…
ले चलूँगा घूँट कुछ कुटुंब में
मैं और मेरी कविता…
पार पहुँचा क्षितिज के…
नूतन आयाम, परिवेश, नयी सी दुनिया
हर ओर मनोहर दृश्य, नयन अघाते नहीं थे,
शुभ्र चाँदनी पहरा दिये तालाब पर
निश्चल कमलिनी, शोभित होता यों मानसरोवर
बढ़ चला उदीची, जिधर देखी एक उदितयौवना।
जलक्रीड़ा किये बहु भाँति
छींटे उछाले मैं और ज्योत्स्ना
अनुराग पनपे पुष्पदल समुदाय से
सुधा पान करातीं कला-निधि की रश्मियाँ,
रुचिकर समाँ आसमाँ के दृष्टिगोचर
चित्त में कल्पित हुयी उद्भावना,
बसूँगा पार अब शृंगारहाट के मैं
कर सरोवर में परिणयन।।
मैं और मेरी कविता…
कुछ और उमाह बीते…
किरणों का स्पर्श,
ऊषा के आगमन का
पर हाय, भोर की किरण क्यों बेधती चली गयी
बूँद-बूँद गिर रही, मधुमयी, रस-भीजना
पुष्प रज टपक रहा,
भाव कुछ यों रचे मनसरस बीच में
धारण कर अमित अमिय, हो जाऊँ मैं अमिट
या कर दूँ अमर अपनी कविता।।
मैं और मेरी कविता…
...“निश्छल”
बचपन की निश्छलता जीवंत हो उठी भावजगत में विचरण कराने वाली कविता
ReplyDeleteहृदयतल से शुक्रिया मैम😊🙏🙏🙏
Deleteकविवर कविमन की भावपूर्ण अति कल्पनाशील, अद्भुत, मोहक अभिव्यक्ति अमित जी...आपकी हर कविता का शिल्प इतना सरस होता है कि उसका मधुर स्वाद मन की जिह्वा को पर बैठ जाता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखते है आप लिखते रहिये मेरी अशेष शुभकामनाएं स्वीकार करें।
😊🙏 आपकी टिप्पणी इतनी बेहतरीन होती है कि मन में उत्साह की लहरें शुरू हो जाती हैं और फिर कुछ लिखने को मन हो आता है। बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी🙏🙏🙏
Deleteवाह अति सुन्दर रहा काव्य का विचरण साथ ले उड़ चला मेरा भी मन ...बाल्यकाल जीवन का स्वर्ण क्षण ..तृप्त कर गया त्रसित प्यासा मन !
ReplyDeleteआपकी काव्य शैली .शब्दों का चयन और लेखन बेहतरीन अलग पर मन भावन ...भाई अमित जी बहुत खूब
सुप्रभात दीदी, बहुत बहुत धन्यवाद, स्नेह बनाए रखें🙏🙏🙏
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सचमुच अमिट और अविस्मरणीय रचना है ये शब्दों का सुंदर अन्वेषण कर उन्हे उपमा अंलकारों से सजा मन के बालपन से तरुणाई तक का सुरम्य सफर अद्भुत अद्वितीय अमित जी।
ReplyDeletesabung ayam bali judi sabung ayam online
ReplyDeleteअविस्मरणीय अमिट अमिय रस छलकाती रचना ।।
ReplyDeleteप्रिय अमित -- सुंदर चित्रात्मकता और बाल्यकाल की मनोरम कल्पना के साथ कविता को साथ लिए क्षितिज के पार की सैर बहुत ही अनुपम और मनभावन है | तारीफ के लिए शब्द नहीं मिलते | एक बार फिर कहूंगी छायावादी कवियों सा लेखन मंत्रमुग्ध कर देता है | सच है जहाँ ना पहुंचे रवि वहां पहुँच जाते हैं कवि |
ReplyDeleteजी, बाल्यावस्था में परिजनों द्वारा, मुझसे किये जाने वाले ठिठोली को २ दशक (लेखन की शुरूआत के समय) बाद एक रूप देने की कोशिश... बहुत बहुत शुक्रिया आपका🙏🙏🙏
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