कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

02 July 2018

मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है

मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है
✒️
मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है,
घर में रखा कुरान, अब वेद हो गया है।
हर चेहरे के रंग पहचान सकता हूँ
क्योंकि,
मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है।

दीख नहीं रहा मुझको, चश्मे का वह टैटू,
जिसने हिंदू-मुसलमां, अलग सहेज रखा है;
लहू की बोतलों में भी नहीं है फ़र्क़ रंगों का,
मज़हबी नाम भी उन पर नहीं कुरेद रखा है।
साहेबान, कद्रदान और बा-ईमान
झूठी तालियाँ मत बजाओ भाईजान,
सरकारी हुकूमत की आँधी में
बादलों का रेड हो गया है
क्योंकि,
मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है।

धुंध भी  मिटेगी जल्द ही वतन से,
धुन बादलों ने ऐसा इक छेड़ रखा है;
होगी चमन में यारी अब सात रंगों से,
मकरंद ऐसा इस मौसम ने बिखेर रखा है।
रात के दामन में देखो, अंधेरा है थम गया
कोहिनूर का उजाला उनको भेद गया है,
पहचान लेंगे कपटी चेहरों को, पल में सभी
क्योंकि,
मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है

भला हो ऐ मालिक, उस मिस्त्री का
न बनाया जिसने खून के रंगों को जुदा,
वरना लाल हिंदू, मुसलमां हरा और
सफेद ईसाई के ज़ख्मों की रंगत होती;
नयी इक जात हम बनाते, सभी मिलकर
फिर लड़ाई वतन में, लहू के रंगों की होती,
तम की रातों को हमने ज़रख़ेज रखा है
जो इंसानियत से हमको परहेज़ हो गया है,
सँभालो तम को, मसीहा ज़माने के मेरे,
मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है।
...“निश्छल”

20 comments:

  1. बहुत ही उम्दा रचना वर्तमान में प्रासंगिक

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया, स्वागत है आपका "मकरंद" पर🙏🙏🙏

      Delete
  2. भला हो ऐ मालिक, उस मिस्त्री का
    न बनाया जिसने खून के रंगों को जुदा,
    वरना लाल हिंदू, मुसलमां हरा और
    सफेद ईसाई के ज़ख्मों की रंगत होती;
    नयी इक जात हम बनाते, सभी मिलकर
    फिर लड़ाई वतन में, लहू के रंगों की होती,
    तम की रातों को हमने ज़रख़ेज रखा है
    जो इंसानियत से हमने परहेज़ रखा है,
    सँभालो मुझको मसीहा ज़माने के मेरे,
    मेरे चश्मे में अब छेद हो गया है।
    बहुत बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आदरणीया, "मकरंद" पर आपका हार्दिक अभिनंदन🙏🙏🙏

      Delete
  3. लाजवाब जाति वाद पर प्रहार भी और मन मे कसक भी सार्थक यथार्थ दर्शन करवाती अमूल्य रचना ।
    साधुवाद अमित जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया🙏🙏🙏

      Delete
  4. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 5 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1084 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय रविन्द्र जी सादर आभार, एवं धन्यवाद इस रचना को "पाँच लिंकों का आनंद" जैसे बेहतरीन मंच के योग्य बनाने के लिए🙏🙏🙏

      Delete
  5. वाह्ह..वाह्ह...बेहद लाज़वाब...चश्मे का छेद महत्वपूर्ण सबक दे गया। काश कि हम हर चश्मा उतार कर इंसानियत का चश्मा पहन लेते तो समाज की हवा में कम से कम कलुषिता का ज़हर तो न घुला होता।
    अमित जी आपकी लेखनी में समाज को बेहतर नजरिया प्रदान करने की ताकत है कृपया सकारात्मक उद्देश्य की और भी कविताएँ अवश्य लिखें।
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बढ़िया कहा आपने श्वेता जी, वस्तुतः हमें इंसानियत के चश्मे की ही जरूरत है, आप सभी के आशीर्वचनों के सहयोग से लेखन में त्रुटियों को सुधारने का प्रयास कर रहा हूँ। शुभेच्छाओं के लिए आपको कोटिशः नमन, स्नेह बनाए रखें, सादर🙏🙏🙏

      Delete
  6. बहुत खूबसूरत रचना।
    शब्द चयन लाजवाब है

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया🙏🙏🙏

      Delete
  7. सटीक और सार्थक रचना..

    ReplyDelete
    Replies
    1. साभार नमन आदरणीया🙏🙏🙏

      Delete
  8. लाजवाब......, बहुत खूबसूरत लिखा है आपने अमित जी ।

    ReplyDelete
  9. प्रिय अमित काश ये छेद उन धर्मांध आखों के चश्मे में भी हो जाता,जिनकी आंखें हरे और भगवा से आगे कुछ देखती ही नहीं।
    बहुत ही रोचक रचना और बड़ा ही सुंदर संदेश ।लिखते रहिए समाज।को ऐसे नज़रिए की जरूरत है हार्दिक स्नेह के साथ

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मैम, सही कहा आपने, समाज को इसी धुंध रहित नजरिये की आवश्यकता है। आपके बहुमूल्य शब्दों के लिए सादर आभार। स्वागत है आपका "मकरंद" पर🙏🙏🙏

      Delete
    2. प्रिय अमित ये टिप्पणी मैंने ही मोबाइल से की थी | आपको ढेरों स्नेह |

      Delete
    3. जी, मुझे भी लगा था कि आप ही होंगीं, लेकिन मन में संकोच भी था, सादर अभिवादन 🙏🙏🙏

      Delete