कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

25 June 2018

अमर जवान

अमर जवान
✒️
शिलालेख अपना भी हो तो, उसपर नाम शहीद लिखाऊँ;
पदवी ऊँची ना हो मालिक, सैनिक भर से काम चलाऊँ।
यह काया दी मातृ-भूमि ने, उनपर यह सर्वस्व लुटाऊँ;
सेवा करने ख़ातिर उनकी, जग से सारे मैं टकराऊँ।
नारे नहीं जरूरी मुझको, गोली-खंजर बस साथी हों;
अर्पण शीश करूँ चरणों में, अहल-वतन गर संघाती हों।
तत्पर साँसें हैं सेवा में, जन्मभूमि, हे माता मेरी;
साँसें भी रुक जायँ अगर तो, काया खड़ी रहेगी मेरी।
जो काया दी मातृभूमि हे, मैं छोड़ उसे बस जाऊँगा;
दूजी काया को धारण कर, फिर इन चरणों में आऊँगा।
दुश्मन नाम मिटा मिट्टी से, राष्ट्र ध्वज उस पर फहराऊँ;
पदवी ऊँची ना हो मालिक, सैनिक भर से काम चलाऊँ।
शिलालेख अपना भी हो तो, उसपर नाम शहीद लिखाऊँ;
जननी जन्मभूमि तुझपर मैं, अपने हर अरमान लुटाऊँ।

अराति सैन्य श्रेणी को नित, काट रहूँ मैं सबसे आगे;
सहस सिरों को काट अघी के, बढ़ूँ अनवरत निर्भय मागे।
है वीर भुजा में लहू नहीं, हमने अंगारे पाले हैं;
निश्चिंत रहो तुम चमन-वतन, ये शोले शूरों वाले हैं।
नाम छोटा, काम भी छोटा, सेवक बन दिन रात भुलाऊँ;
दुश्मन भी गर माफी माँगे, उठकर उसको गले लगाऊँ।
शिलालेख अपना भी हो तो, उसपर नाम शहीद लिखाऊँ;
पदवी ऊँची ना हो मालिक, सैनिक भर से काम चलाऊँ।
क्षमा योग्य नहीं है लेकिन, कभी भी, कपट सृष्टि-रीति में;
दंड मात्र परिभाषित उसको, जो भी विघ्न करें सप्रीति में।
पर मालिक कुर्सी के सुन लो, जो निंदा रस टपकाते हो;
काटे सिर सैनिक के जाते, निंदा को कड़ी बताते हो।
भेंट भेजते उन शीशों को,विवरों में छिपते जाते हो;
निंदा-निंदा करते करते, घर आलीशान बनाते हो।

निंदा नहीं उपाय पाप का, नित कड़ी करो तो कायर हो;
मत न्यायालय में जाने दो, न ही एक मुकदमा दायर हो।
आतंकी, मनुज न हो सकता, सम्मान न उसके मानव के;
अधिकार न जीने का उसको, ना जीने लायक गुण उसके।
उपाय एक दूजा भी है अब, नहीं लेख बनवाने होंगे;
आदेश एक मात्र कुर्सी से, चीख-चीख चिल्लाने होंगे।
गोली मारो-गोली मारो, सरेआम शूली पर डालो;
चौराहों पर बाज़ारों में, आतंकी, फाँसी पर डालो।
पर,
गीदड़ कहाँ साहसी होता, रचता रहे सियासी सपने;
दुख की बात यही है बस इक, छद्म भेड़िये भी हैं अपने।
मक्कार भेड़ियों के सुधार, अब कुछ तो करो नौजवानों;
प्रजातंत्र की शक्ति बनो अब, नहीं जाति के झंडे तानो।
गिरगिटों के पूर्वज सारे, ना कष्ट समझते धरनी के;
करते फँसकर लोलुपता में, चीरहरण अपनी जननी के।
...“निश्छल”

21 comments:

  1. ग़ज़ब...वाह्ह्ह...अद्भुत.. वीरों के हृदय के भाव़ो को व्यक्त करती इतनी सुंदर अभिव्यक्ति पढ़कर मन तरल हो गया...बेहद भावपूर्ण रचना निश्छल जी👌👌👌

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    1. 😊सादर धन्यवाद श्वेता जी🙏🙏🙏

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  2. वाह वाह ....भाई अमित जी वाह .....आफरीन bro
    उष्ण श्वास काव्य वह रहा
    तलवारों की झंकार भरे
    हर हिय में ज्वाला सी भर दे
    कवि अमित जब हुंकार भरे !
    रक्त खौल गया कवि पढ़ कर
    शब्दों के तीर चले भारी
    कथनी जैसा कर्म अगर हो
    तभी निखरता है यौवन !
    नमन brO नमन
    मन अति प्रसन्न वीर रस मेरा प्रिय विषय

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    1. सत्य वचन दीदी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏🙏🙏

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  3. प्रिय अमित --आपकी सुंदर, सरस ,विस्तृत रचना वीर सैनिक के प्रति अत्यंत हृदयस्पर्शी भावों से भरी है | अभी ऑनलाइन हुई तो सबसे पहले पहले इसी पर नजर पड़ी और मैं यहीं ठहर गई | खूब फुर्सत में वीर जवान की भूमिका और उसी जैसा होने का सुहाना ख्वाब बुनती ऑंखें !!!!!!!!!!! सैनिक - सैनिक होता है चाहे उसकी पदवी सिपाही की हो या किसी अधिकारी की - रणभूमि में दोनों सर्वोच्च बलिदान देने को आतुर रहते हैं -

    मातृभूमि को निश्चिंतता का संबल प्रदान करती जवान की पंक्तियाँ कितनी सुंदर हैं -- वाह और सिर्फ वाह !!!!!!



    है वीर भुजा में लहू नहीं -हमने अंगारे पाले हैं -

    निश्चिन्त रहो तुम चमन वतन , ये शोले शूरों वाले हैं --

    युद्ध भूमि में शत्रु के शीश का वरन तो शरणागत को क्षमा उदार सैनिक का अहम गुण है| वही आतंकी को मानव मानने से इनकार करती ओजपूर्ण भावनाएं एक मानवतावादी सैनिक का आक्रांत स्वर है -

    आतंकी मनुज ना हो सकता ,सम्मान न उसके मानव के -

    अधिकार ना जीने का उसको , ना जीने लायक गुण उसके !--

    सच कहूँ तो एक- एक पंक्ति हृदयग्राही है | आज तक नही सुना गया कि किसी नेता ने अपने बेटे - बेटियों को राष्ट्र की सेवा करने के लिए सैनिक बनाने का प्रयास किया हो अथवा किसी की संतान ने सर्वोच्च बलिदान दिया हो || कथित' अपनों' की तो बात ही अलग है |अपनों की कुटिल के चालों से परेशान जवान का आह्वान --

    गीदड़ कहाँ साहसी होता ,रचना रहे सियासी सपने -

    दुःख की बात यही है बस , छद्म भेडिये भी हैं अपने -

    मक्कार भेदियों के सुधार , अब कुछ तो करो नौजवानों -

    प्रजा तन्त्र की शक्ति बनो अब , नही जाति के झंडे तानो !!!प्रिय अमित रचना सराहना से परे और नितांत अतंस की भावनाओं की एक निर्मल निर्झरी सी है || आपको बधाई देती हूँ इस प्रखर ओजभरी सैनिकों के सम्मान में चार चाँद लगाती रचना के लिए |काश !हर युवा के ऐसे ही विचार हो देश के लिए तो देश कहाँ से कहाँ पहुँच जाता | सस्नेह --




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    1. आदरणीया रेनू जी, आपके अंतस की सहृदयता से उपजी इन विस्तृत एवं भावात्मक आशीष रूपी पंक्तियों के समक्ष करबद्ध श्रद्धावनत। रचना के प्रति आपके अमूल्य विचार जानकर मन पुलकित हो गया। साभार अभिनंदन🙏🙏🙏

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    2. प्रिय अमित एक बार फिर से बधाई आपको |आपकी रचना आज पांच लिंकों की शोभा बढ़ा रही है |

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  4. अदम्य साहस और वीरता औज से भरी सुंदर विचार ,देशभक्ति साहस का अनुठा संगम ।
    अद्भुत अप्रतिम रचना ।
    सोये हुवे को उठा दो ऐसी प्रेरणा देते चलो ।
    साधुवाद ।

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    1. 😊शुक्रिया मैम, स्नेह बनाए रखें🙏🙏🙏

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. श्वेता जी, बहुत-बहुत धन्यवाद आपका, एवं "पांच लिंकों का आनंद" जैसे बेहतरीन ब्लॉग के लिए ढेरों शुभेच्छाएँ💐💐💐

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  6. आतंकी मनुज ना हो सकता ,सम्मान न उसके मानव के -

    अधिकार ना जीने का उसको , ना जीने लायक गुण उसके !
    बहुत खूब.....
    शौर्य वीरता और सैनिकों के प्रति सम्मान से ओतप्रोत बहुत ही लाजवाब रचना.....
    श्रेष्ठतम कृति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको...

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    1. सादर धन्यवाद आदरणीया🙏🙏🙏

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी🙏🙏🙏

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    1. सधन्यवाद नमन आदरणीय, स्वागत है आपका 'मकरंद' पर🙏🙏🙏

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  9. वीररस के भावों से सजी अत्यंत सुंदर रचना । बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर सृजन के लिए ।

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    1. जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार🙏🙏🙏

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  10. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (06-02-2020) को 'बेटियां पथरीले रास्तों की दुर्वा "(चर्चा अंक - 3603) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है 

    रेणु बाला 

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