कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

17 June 2018

इक बार मिलें

इक बार मिलें
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चल, उनसे फिर इक बार मिलें; दिल क्यूँ पछताता फिरता है?
चाँदनी तले आगाज़ करें; तू, उनके नाम सँवरता है।

दिन में रौशन-रौशन वादी; भीनी तेरे अहसासों की,
जब याद दिलाती हैं मुझको; सावन घनघोर फुहारों की;
जब आ जातीं यादें तेरी; मेरी पलकों पर बैठ कभी,
सब भूल चलूँ सुधि खो कर मैं; तेरी यादों में ऐंठ कहीं;
तेरी नज़रों की आँच सजा; जब जलन उठे उर में मेरे,
खाता हूँ कस्में-वादे मैं; जीता हूँ यादों में तेरे।

मेरी राहों में बैठ कभी; तुम अपनी मधुर फुहारों से,
ऐ सावन अपनी शीतलता; बिखरा देना कुछ राहों में;
मधुमास कभी छल कर सकता; इसलिये दूर ही जाता हूँ,
जप रहा नाम सावन तेरी; मैं उसको नहीं बुलाता हूँ;
क्या जाने रंगों को देखें; वो रंगीले मधुमासी के,
फिर उभर पड़ें उर ज़ख़्म् मेरे; बहते जल में बरसाती से;
समझा दे ऐ सावन उनको; अब तड़ित तर्पणों के नगमें,
बारहमासी कोप वृष्टि से; दिल मेरे अब भी है सहमें।

जीवन के इस झंझट से उठ; पर उनसे दिल इक बार मिलें,
अंगार विचरना गुर अपना; चल, उनसे फिर इक बार मिलें।
...“निश्छल”

6 comments:

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    1. 😂😂😂सादर धन्यवाद आदरणीय🙏🙏🙏

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  2. वाह ....चल उनसे फिर एक बार मिले ....क्या बात
    👌👌👌👌👌👌
    त्रसीत पिपासा बढ़ती जाती चाहे जितने आघात मिले
    प्यासा सावन फिर फिर कहता
    चल उनसे एक बार मिले !
    अद्भुत मनोभाव लिये लेखन अमित जी बहुत खूब भाई

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    1. वाह... मनोहर पंक्तियाँ... सादर आभार एवं धन्यवाद🙏🙏🙏

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  3. बहुत सुंदर विरह गान सरस अलंकृत।

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    1. 😂😂साभार धन्यवाद आदरणीया🙏🙏🙏

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