कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

15 June 2018

मन-अंगार

मन-अंगार
✒️
मुँह फेर लिया फिर आज चाँद
फिर भी मैं तुझे बुलाता हूँ,
कातर नयनों से उबल रहे
मनभावों को ठहराता हूँ;
चाहो, तो लो अग्निपरीक्षा
ठंडे होंगे अंगारे भी,
है तप्त हृदय चिंगार भरा
दहके हैं मन विष ज्वालें ही।
मुझ तरफ नज़र मत फेर चाँद
मुझको अंगारे प्यारे हैं,
बुझ ना जायें शीतलता से
मुश्किल से मैंने बाले हैं;
मैं नहीं कहूँगा, मिल आकर
हृदयागार एक अंगार के,
पर, मत कर शीतल तुम चंदा
यह तप्त हृदय अब प्यार से।
...“निश्छल”

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बिल्कुल, सादर धन्यवाद🙏🙏🙏

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  2. बहुत सुंदर, चाँद को बुलाते कविहृदय की खूबसूरत कल्पना।

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  3. वाह्ह्ह....बहुत सुंदर भावाव्यक्ति...👌👌👌

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका🙏🙏🙏

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  4. वाह अनुपम सुंदर ।
    चांद को आधार मान संतप्त हृदय के उद्गगार।

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    1. 😂😂😂जी बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏

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