मन-अंगार
✒️
मुँह फेर लिया फिर आज चाँद
फिर भी मैं तुझे बुलाता हूँ,
कातर नयनों से उबल रहे
मनभावों को ठहराता हूँ;
चाहो, तो लो अग्निपरीक्षा
ठंडे होंगे अंगारे भी,
है तप्त हृदय चिंगार भरा
दहके हैं मन विष ज्वालें ही।
मुझ तरफ नज़र मत फेर चाँद
मुझको अंगारे प्यारे हैं,
बुझ ना जायें शीतलता से
मुश्किल से मैंने बाले हैं;
मैं नहीं कहूँगा, मिल आकर
हृदयागार एक अंगार के,
पर, मत कर शीतल तुम चंदा
यह तप्त हृदय अब प्यार से।
...“निश्छल”
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मुँह फेर लिया फिर आज चाँद
फिर भी मैं तुझे बुलाता हूँ,
कातर नयनों से उबल रहे
मनभावों को ठहराता हूँ;
चाहो, तो लो अग्निपरीक्षा
ठंडे होंगे अंगारे भी,
है तप्त हृदय चिंगार भरा
दहके हैं मन विष ज्वालें ही।
मुझ तरफ नज़र मत फेर चाँद
मुझको अंगारे प्यारे हैं,
बुझ ना जायें शीतलता से
मुश्किल से मैंने बाले हैं;
मैं नहीं कहूँगा, मिल आकर
हृदयागार एक अंगार के,
पर, मत कर शीतल तुम चंदा
यह तप्त हृदय अब प्यार से।
...“निश्छल”
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बिल्कुल, सादर धन्यवाद🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर, चाँद को बुलाते कविहृदय की खूबसूरत कल्पना।
ReplyDeleteजी, सादर आभार🙏🙏🙏
Deleteवाह्ह्ह....बहुत सुंदर भावाव्यक्ति...👌👌👌
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका🙏🙏🙏
Deleteवाह अनुपम सुंदर ।
ReplyDeleteचांद को आधार मान संतप्त हृदय के उद्गगार।
😂😂😂जी बहुत बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏
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