कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

27 May 2019

फिर अधूरा चाँद कोई

फिर अधूरा चाँद कोई
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लेखनी! आराम कर अब, ज्योति सूरज की ढली है।
फिर अधूरा चाँद कोई, रात को रौशन करेगा।

ज्ञान के दीपक जलाकर
दूर करने को अँधेरे,
ख्याति अर्जन के तरीके
और हैं, बहुधा घनेरे।

जो जगत का मार्गदर्शन, स्वार्थ को तजकर करेगा।
फिर अधूरा चाँद कोई, रात को रौशन करेगा।

टूट जाने को विवश हैं
तारकों के बंध सारे,
चिर अँधेरी रात में हैं
जुगनुओं से मीत प्यारे।

जो, समय की रीत को तज, प्रेरणा मन में भरेगा।
फिर अधूरा चाँद कोई, रात को रौशन करेगा।

अड़चनों की खोल साँकल
निर्भयी, रातें गुजारे,
शांति से, नभवास में भी
कांतिमय मुख से निहारे।

धूप का मारा चहककर, व्योम को शीतल करेगा।
फिर अधूरा चाँद कोई, रात को रौशन करेगा।

है मलिन सी प्रीति की छवि
यह, ज़माना बाँचता है,
डालकर परदे लबों पर
निर्जनों में जाँचता है।

दिव्य सी आभा प्रखरतम, प्रेम की, जग में भरेगा।
फिर अधूरा चाँद कोई, रात को रौशन करेगा।
...“निश्छल”

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर सृजन अनुज
    सादर

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  2. हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत रचना अमित जी . इसमें मुझे कुछ भी ऐसा नहीं नजर आया आपत्तिजनक हो. Facebookको न जाने क्या खल गया

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति

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