कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

19 February 2019

दुल्हन नयी नवेली

दुल्हन नयी नवेली
✒️
दूर क्षितिज पर इक दरवाजा, अंदर रात अकेली;
निर्जन वन दुल्हा बन बैठा, दुल्हन नयी नवेली।

उल्लू थे बाराती बनकर, मुंडेरों पर गाते
मुर्ग बैठ अपने नीड़ों में, कुकडूँ कूँ चिल्लाते;
स्याह रात, घनघोर घटा थी, डरती नयी हवेली

भूत-प्रेत, बेताल झूमते, मस्ती में थे सारे
भाँति-भाँति थे चीख मारते, सैन करें चौबारे;
झींगुर झीं-झीं करते रहते, सुनती रात अकेली

सुबह, दिवस भी उठकर आया, सूरज उसका साथी
दरवाजे को खोला सूरज, अंदर थे बाराती;
थर-थर काँप उठे, सब भागे, दुल्हन भी अलबेली
...“निश्छल”

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