कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

14 December 2018

हाहाकार मचाओ

हाहाकार मचाओ



मेरी पलक पिंजरों में हे, कैद, सुनो शैतानी आँसू
उठो सँवर कर, रात हुई अब, उठकर हाहाकार मचाओ।

ज्योतिर्मय करतीं दुनिया को
स्वयं शाम की बोझिल किरणें,
दीन हुईं, अब मौन रूप में
चंदा नभ पथ पर निकला है;
चमकाता आँखों में मोती
धवल रश्मियों सा इतराता,
तारों की बारातों से सज
वलय बीच में वह पिघला है।
संध्या के आहातों में अब, ललचाते ओ काले बादल!
ज़रा लगाकर ऐनक देखो, तुम भी हाहाकार मचाओ।

सिलबट्टा घिस चुका समय का
चरखी युग की टूट गई है,
त्वरित भोर के दस्तक देते
नीम रात भी रूठ गयी है;
अगर सवेरा हुआ जन्म का
कुदरत ने यदि बाँग भरी है,
मृत्यु रूप शाश्वत नैया में
दूर भले, पर साँझ खड़ी है।
तृणवत लौकिक अभिलाषाओं, में फँसते ओ नैन दुलारे
उठो सँभलकर बीते यह ऋतु, खुलकर हाहाकार मचाओ।

जीवन के सरगम की तानें
सोच समझ कर छेड़ो साथी,
टूट गया गर तंतु, यंत्र का
पीड़ा की भरमार मचेगी;
धूमिल होने से पहले अब
बाँच खड़े हो कुछ जनश्रुतियाँ,
मीठी ध्वनियों से सरगम के
जीवन नौका पार पड़ेगी।
संलग्नित हो टिपटिप बूँदों, के संगीतों में झूमें जो
मेरे अधरों की मुस्कानों, खिलकर हाहाकार मचाओ।
...“निश्छल”

16 comments:

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    1. सादर धन्यवाद मैम🙏🙏🙏

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 16 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय🙏🙏🙏

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  3. जीवन के सरगम की तानें
    सोच समझ कर छेड़ो साथी,
    टूट गया गर तंतु, यंत्र का
    पीड़ा की भरमार मचेगी; वाह बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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  4. प्रिय अमित -- आपके लेखन के लिए क्या लिखूं ? नवीनतम अछूता विषय और उस पर इतना सधा लेखन! छायावादी कवियों को स्मरण करवाता हुआ| आंसूओं को हाहाकार मचाने का उद्बोधन तो बादलों को ऐनक से देखने उद्बोधन साथ में मधुर मुस्कानों को हाहाकार मचाने की प्रार्थना कितनी अद्भुत है | भाषा और चित्रात्मकता बेजोड़ है !!!!

    ज्योतिर्मय करतीं दुनिया को
    स्वयं शाम की बोझिल किरणें,
    दीन हुईं, अब मौन रूप में
    चंदा नभ पथ पर निकला है;
    चमकाता आँखों में मोती
    धवल रश्मियों सा इतराता,
    तारों की बारातों से सज
    वलय बीच में वह पिघला है।
    बहुत खूब !!! हमेशा की तरह लाजवाब और अत्यंत सराहनीय रचना के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं और स्नेह |

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    1. सादर, निःशब्द नमन दीदी🙏🙏🙏

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  5. Replies
    1. सादर आभार मान्यवर🙏🙏🙏

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  6. सिलबट्टा घिस चुका समय का
    चरखी युग की टूट गई है,
    त्वरित भोर के दस्तक देते
    नीम रात भी रूठ गयी है;
    अगर सवेरा हुआ जन्म का
    कुदरत ने यदि बाँग भरी है,
    मृत्यु रूप शाश्वत नैया में
    दूर भले, पर साँझ खड़ी है।
    तृणवत लौकिक अभिलाषाओं, में फँसते ओ नैन दुलारे
    उठो सँभलकर बीते यह ऋतु, खुलकर हाहाकार मचाओ।
    वाहवाह...
    कमाल की रचना... अद्भुत अविस्मरणीय... बहुत ही लाजवाब..

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  7. निशब्द हूं भाई अमित जी आज भी जब ऐसी रचनाएं पढने को मिलती है तो यूं ही लगता है जैसे कोई तारा पथ भूल कर आ गया है साहित्य व्योम पर, आलोकित करने काव्य की धूमिल होते प्रकाश को।
    आल्हादित करती आलौकिक रचना।

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    1. हृदयतल से आभार दीदी🙏🙏🙏

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