बिखरो मेरे ज़ज़्बातों
✒️
बिखरो मेरे ज़ज़्बातों
तुम तो धीरे-धीरे,
करुण स्वरों को मेरे अब तक
हर जीवित ठुकराया है।
रखा सुरक्षित जिन्हें जन्म से, हीरे-मोती से शृंगारित
चक्षु तले निशि-दिन, संध्या को, रखा सवेरे भी सम्मानित;
स्वर्ण सलाखों के पिंजर में, मुझे छोड़कर क्यों जाते हो?
मुड़कर देखो रंज-रुदन को, उपहासों से क्या पाते हो?
उपहासों से बेधो मन को
तुम तो धीरे-धीरे,
अधम साँस को मेरे सुन लो
हर जीवित ठुकराया है।
मधुर गीत को गाने वाले, क्रंदन गाना सीख गये हैं
ऋजु हृदयों के ज्वारों से ही, भाव सभी अब भींग गये हैं;
खुशहाली में पलनेवाले, दहक पान कर, करें गुज़ारा
दहन हुवे जो भाव चित्त के, दावानल पर रीझ गये हैं।
विक्षत करो संत्रस्त कलेजा
तुम तो धीरे-धीरे,
आकांक्षाएँ मेरी अब तक
हर जीवित ठुकराया है।
घोर नींद में स्वप्न मुद्दई, मुझको देते रहे सहारे
ज्ञापित दिवस नहीं था उनको, दिवास्वप्न, वे बिना विचारे;
रुष्ट जगत की कटु कृपाण ने, काटा वहमों को जब जाकर
आहत होकर खड़े रिक्त अस, दुख सरिता पर कहीं किनारे।
ख़्वाबों मेरे, मरो डूबकर
तुम तो धीरे-धीरे,
इस अपात्र को अब तक आख़िर
हर जीवित ठुकराया है।
...“निश्छल”
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बिखरो मेरे ज़ज़्बातों
तुम तो धीरे-धीरे,
करुण स्वरों को मेरे अब तक
हर जीवित ठुकराया है।
रखा सुरक्षित जिन्हें जन्म से, हीरे-मोती से शृंगारित
चक्षु तले निशि-दिन, संध्या को, रखा सवेरे भी सम्मानित;
स्वर्ण सलाखों के पिंजर में, मुझे छोड़कर क्यों जाते हो?
मुड़कर देखो रंज-रुदन को, उपहासों से क्या पाते हो?
उपहासों से बेधो मन को
तुम तो धीरे-धीरे,
अधम साँस को मेरे सुन लो
हर जीवित ठुकराया है।
मधुर गीत को गाने वाले, क्रंदन गाना सीख गये हैं
ऋजु हृदयों के ज्वारों से ही, भाव सभी अब भींग गये हैं;
खुशहाली में पलनेवाले, दहक पान कर, करें गुज़ारा
दहन हुवे जो भाव चित्त के, दावानल पर रीझ गये हैं।
विक्षत करो संत्रस्त कलेजा
तुम तो धीरे-धीरे,
आकांक्षाएँ मेरी अब तक
हर जीवित ठुकराया है।
घोर नींद में स्वप्न मुद्दई, मुझको देते रहे सहारे
ज्ञापित दिवस नहीं था उनको, दिवास्वप्न, वे बिना विचारे;
रुष्ट जगत की कटु कृपाण ने, काटा वहमों को जब जाकर
आहत होकर खड़े रिक्त अस, दुख सरिता पर कहीं किनारे।
ख़्वाबों मेरे, मरो डूबकर
तुम तो धीरे-धीरे,
इस अपात्र को अब तक आख़िर
हर जीवित ठुकराया है।
...“निश्छल”
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 13 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1245 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
रचना की गरिमा बढ़ाने के लिए सादर नमन आदरणीय🙏🙏🙏
Deleteजब तक जीवन है , आँखों में ख्वाब तो आते ही रहते हैं , सारा जीवन इन ख्वाबों और उसको पाने की दौड़ में ही बीत जाता है | आपने बेहतरीन रचना लिखी , आपकी शैली में एक अलग आनंद है ... बधाई
ReplyDeleteआपकी कृपादृष्टि के लिये सादर नमन एवं आभार🙏🙏🙏
Deleteबहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद मैम
Deleteवाहहह.... वाहहह.... गज़ब...अद्भुत लिखते है आप निश्छल जी...अप्रतिम... बहुत दिनों बाद आपकी रचना आई पढ़कर आनंद आ गया।
ReplyDeleteसधन्यवाद आभार आपका🙏🙏🙏
Deleteसराहना से परे होती है आपकी हर रचना ।
ReplyDeleteइतनी गहरी इतनी हृदय स्पर्शी बस अद्भुत भावों का सागर सुंदर शब्द सौष्ठव लिये ।
अप्रतिम अभिराम ।
सादर नमन दीदी🙏🙏🙏
Deleteबहुत सुन्दर निश्छल जी.
ReplyDeleteहृदयतल से अभिनंदन आदरणीय🙏🙏🙏
Deleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteमधुर गीत को गाने वाले, क्रंदन गाना सीख गये हैं
ऋजु हृदयों के ज्वारों से ही, भाव सभी अब भींग गये हैं;
वाह!!!
बहुत लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद मैम, सादर🙏🙏🙏
Deleteरखा सुरक्षित जिन्हें जन्म से, हीरे-मोती से शृंगारित
ReplyDeleteचक्षु तले निशि-दिन, संध्या को, रखा सवेरे भी सम्मानित;
स्वर्ण सलाखों के पिंजर में, मुझे छोड़कर क्यों जाते हो?
मुड़कर देखो रंज-रुदन को, उपहासों से क्या पाते हो?!!!
प्रिय अमित एक और बेजोड़ सृजन | हमेशा की तरह | माँ शारदे इस प्रवाह को कभी थमने ना दे यही दुआ है | मेरा हार्दिक स्नेह |
सादर अभिवादन एवं आभार दीदी🙏🙏🙏
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसाभार नमन सर🙏🙏🙏
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