कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

21 October 2018

रमुआ के घर में

रमुआ के घर में
✒️
पहुँच चुकी है अंर्तमन तक
तथ्यों की इक टोली,
आज चित्त में भावों का हड़ताल हुआ है।

भूसी नहीं निलय में
खाने के भी लाले,
बेच भवन पुश्तैनी
मेंटेनिंग दुनाले;

रमुआ के घर में आख़िर अब
टूटे बरतन, खोली,
चौराहों पर बहकी-बहकी चाल चला है।

दोषी हैं बस नेता
दिनभर करे मसख़री,
अंबुज के अधरों पर
जैसे कोई पहरी;

हाथ-पैर में ताला डाले
मुँह में दही जमाये,
चारदीवारी पर छज्जे का हाल बुरा है।

औरत को ना माने
ढाबा रोटी, सोंधी
जाग बजे बारह तक
उठे बहुरिया कौंधी;

रातों में नींदों के आते
भला-बुरा सब बोले,
मच्छरों के राज में वह सरताज भला है।
...“निश्छल”

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर

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    1. जी बहुत बहुत धन्यवाद। वर्तमान में प्रकाशन का कोई विचार नहीं है🙏🙏🙏

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