कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

10 June 2018

चाँद का फूल

चाँद का फूल
✒️

चाँद का फूल खिला मेरे अँगना,
देख के उसको गुल शरमाये रे...
देख के उसको गुल शरमाये रे,
छुपाए पंखुड़ियाँँ चाँद से अपना;
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना...
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।

जागूँ मैं रातभर, गाऊँ नगमें...
जागूँ मैं रातभर, गाऊँ नगमें,
आँख़ों में रख, सो जाऊँ अँगन में;
जागूँ मैं रातभर, गाऊँ नगमें,
बिठा, पलकों पर, रात-रानी बना
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।

देखता है मुझे मुस्कान भरकर,
विदा करता घना-घन साज़ सजकर;
नवाती हूँ नयन, दृग ताक उस पर,
समझे वो बातें, मुस्कान भरकर;
गीत उसको मैं सुनाऊँ गुनगुना,
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।

महक उठी सोंधी सी बगिया हरी,
जानकर दूर ही देखे जौहरी;
रचाती है डोर, चाँदनी वैसे
हो वसंत में वो दामिनी जैसे;
बसा तू, मन में, रहूँ मैं अनमना,
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।

फूल से मुखड़े, तारों सी आँख़ें...
फूल से मुखड़े, तारों सी आँख़ें;
दीप सी चमकती, टिकुलियाँ वारें
लाखों जनम, नलिनी नज़र उतारे;
सँवारूँ जाग के मैं, अँगन अपना
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।

वो गुलाबी सी कली खिली-निखरी,
जुबाँ पे आह जब जहाँ के बिखरी;
निकलकर बादलों की छाँव बैठी,
मृणालिनी की वो याद में ऐंठी;
बना लूँ आज उसको निलय अपना,
चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।
...“निश्छल”

6 comments:

  1. मन को प्रफुल्लित करने वाली रचना

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  2. सादर आभार सर🙏🙏🙏

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  3. बेहद दिलकश वाह्ह्ह👌👌👌👌👌
    बहुत सुंदर रचना आपकी..।

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  4. प्रिय अमित -- मैन्य रचना बार - बार पढ़ रही हूँ और इसमें छुपे सांकेतिक हर्ष को पहचानने का प्रयास कर रही हूँ | लगता है घर -आंगन में कोई नन्ही जान फूल सी खिल महक रही है | शायद इसी लिए ब्लॉग से इतनी दूर रहे | अगर मेरा अनुमान सही है तो ढेरों बधाईयाँ !!!!!!!
    कितनी सुंदर और वात्सल्य से भरपूर पंक्तियाँ हैं -
    फूल से मुखड़े, तारों सी आँख़ें...
    फूल से मुखड़े, तारों सी आँख़ें;
    दीप सी चमकती, टिकुलियाँ वारें
    लाखों जनम, नलिनी नज़र उतारे;
    सँवारूँ जाग के मैं, अँगन अपना
    चाँद का फूल खिला मेरे अँगना।--
    मुझे जरुर बताना मैं सही हूँ गलत
    और रचना तो है ही अनुपम | मेरी शुभकामनाये स्वीकार हो |

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    1. हा.हा.हा.हा 😂😂😂😂 आदरणीया रेनू जी मेरी ५ वर्ष की एक नन्ही बच्ची है। और वही मेरे लिए सबकुछ है। ऐसे मनभाव से लिखी कविता को पढ़कर आपका निष्कर्ष यकीनन उचित है।
      .
      कुछ दिनों पहले, एक अल्फ़ाज़ आया था होंठों पर “चाँद का फूल”। इसी के इर्दगिर्द गुनगुनाते हुए यह कविता लिखी थी मैंने। जिसमें नायिका अपने फूल (नवजात बच्ची) के प्रति अपनी सुखद अनुभूतियों को गुनगुना रही है। निश्चित रूप से वात्सल्य के सलोनेपन की उपज है यह गीत।
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      जी, कुछ वक्त के लिए ब्लॉग से दूर होने का कारण सर्विस रिक्वायरमेंट है। नौकरी/पेशे में तो अक्सर दिनचर्या अस्त-व्यस्त होती ही रहती है।
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      आपके सुकोमल अनुमान प्रति करबद्ध श्रद्धा भाव। अमूल्य टिप्पणी और रचना के भावों को यथानुरूप समझने के लिए सादर आभार एवं नमन🙏🙏🙏

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