कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

02 May 2018

राति का विहंग

राति का विहंग
✒️
निहाल है चमन, अमन छाया वन में,
श्रवणों को गुँजित, गीत ही पसंद हैं;
बिहँस पड़े हैं सब, सुधि मेरे मन की,
जीव अँगन में, अनंद ही अनंद हैं।

चारि कोस दूरि बसँ, चंद्र गगन बीच,
पातियों में तंत्र,एक तारा-तंत्र है;
गीत ना पसंद, पसंद ना गीतकार,
ओजस निशीकांत, निशि अपरंत है।

हिय में निषंग, बादलों का सरताज,
छेड़ि रहा बीन, नृत्य पवन तुरंग है;
छोड़ि-जागि उठि-भागि, मसि-उमंगि मेरि,
गीति अधराए न धराए मनुजंग हैं।

सीध-सीध बात, तोल मनः रंध्र भी,
श्रवण करिश्मों की, महिमा अनंग है;
उठि के मेट, ज्यों, जीव से जिय भागा,
उड़ि रहा बीती, राति का विहंग है।
...“निश्छल”

4 comments:

  1. वाह छंदात्मक शैली सुंदर सरस काव्य।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, स्नेह बनाए रखें...🙏🙏🙏

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  2. हिय में निषंग, बादलों का सरताज,
    छेड़ि रहा बीन, नृत्य पवन तुरंग है;
    छोड़ि-जागि उठि-भागि, मसि-उमंगि मेरि,
    गीति अधराए न धराए मनुजंग हैं।-
    सरस , सुकोमल शब्दावली में सजी सुंदर पद्य रचना | शुभकामनाये प्रिय अमित |

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    1. जी, सादर अभिवादन एवं धन्यवाद🙏🙏🙏😊

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