कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

04 May 2022

मैं, अगर मिल भी गया किंवदंतियों में

 मैं, अगर मिल भी गया किंवदंतियों में



🖋️

क्या कहें सामर्थ्य कितनी है हमारी?

प्रश्न, इक अहम्मन्य कोई पूछता है...


नींव अंतस की धसक कर टूट जाती।

सोचता, अनुशंसितों की पंक्तियों में,

एक संज्ञा और, क्या जुड़कर रहेगी?

या कि, रण मैं जीत लूँगा

लोभ की अलकापुरी में द्वंद्व से निज?


मैं, बिखरकर नित स्वयं को कोसता हूँ।

पक्षपाती एक सरिता,

द्विगुणित होकर ढुलकती

अंतःकरण के काननों से;

जलमग्न हो कर

तृप्त होते अक्षि के त्रिकोण,

जिनमें अश्रु के गोले

खुले सैलाब का आह्वान करते

सिंधु के हर मानकों को तोड़कर।


धुन रहा हूँ शीश अपनेआप ही,

क्या लालसा मेरी

मुझे इस हाल में ही छोड़ देगी?

ताकि,

मैं पुनः निर्मल मनन कर, नित नये उत्थान करता

संवेदना के सेतु रच, अभिव्यंजना की राह चलता

बन सकूँगा एक राही;

जग जिसे उत्तीर्ण कर देगा

सिद्धि की आलोचना में?


या कि कह दूँ, बाहुबल से नाप अपनी,

या ज्ञान की निज दक्षता से जाँच अपनी?

मैं, अगर मिल भी गया किंवदंतियों में

पूछ लेना फुसफुसाकर नाम मेरा;

किस गली रहता, बसा हूँ कौन से घर

जान लेना, और है क्या काम मेरा?

...“निश्छल”

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
  2. भावपूर्ण सुंदर सृजन

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
    'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  4. सार्थक प्रश्न और अन्तःकरण अवलोकित करता मन!!बहुत सुन्दर रचना!!

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा और सुंदर गीत

    ReplyDelete