बादल-८
(चंदा के खेतों में)
✒️
दिनभर जोत पाटीरों को,
परिक्लांत ग्रहनायक,
विश्रांति प्राप्ति के लिये अपनी आँखें बंद किये हैं,
या, परवर अपने खेतों को जोत, घर को चले गये हैं।
चंदा, मालिक का बालक, रात्रि तले बैठ
खेतों की रखवाली कर रहा है,
चंदा अपने खेतों की कहानियाँ मुझे सुना रहा है।
१
कितनी सुंदर काश्त चांद की
बड़े श्वेत मेघ के ढेले,
ढेलों के चौगिर्द नीले-नीले पानी की तरी…
पानी में कनिष्ठ तारे अपनी परछाई देख रहे हैं।
अपने चेहरे देख, चमकीली होती आँखों से
अब वे मुझे देख रहे हैं।
ऐसा लगता जैसे अंजुम, बादल के घर में रह रहे हैं।
२
चंदा आख़िर बालक ठहरा
सितारों संग कुछ खेल रहा है,
बादल के परदे से झाँक,
तारे टिमटिम बोल रहे हैं।
सुरभि-स्नात समीर पटों को
शनैः-शनैः आहट देता है,
तारे डरकर मद्धिम होते कभी छबीले हो जाते हैं।
३
चंदा के खेतों में
बादल के सरसब्ज़ फ़सल से,
तारे ऐसे झाँक रहे हैं
जैसे गौरैया फ़सल की बाली के पीछे छुपकर,
ताराधिप के दीपशिखा से, बदन को अपने छिपा रही हैं…
और अपने ठोरों से शस्य रसास्वादन कर रही हैं।
प्रातः दर्शन होते ही पखेरू
सूरज की आहट को भाँप,
फिर से उन्हीं फसलों में छिप जाते हैं।
मैं, दूर देश का पथिक, मौन-सम्मति हो,
दृश्यावलियों से हर्षोन्मत्त हो रहा हूँ।
...“निश्छल”
(चंदा के खेतों में)
✒️
दिनभर जोत पाटीरों को,
परिक्लांत ग्रहनायक,
विश्रांति प्राप्ति के लिये अपनी आँखें बंद किये हैं,
या, परवर अपने खेतों को जोत, घर को चले गये हैं।
चंदा, मालिक का बालक, रात्रि तले बैठ
खेतों की रखवाली कर रहा है,
चंदा अपने खेतों की कहानियाँ मुझे सुना रहा है।
१
कितनी सुंदर काश्त चांद की
बड़े श्वेत मेघ के ढेले,
ढेलों के चौगिर्द नीले-नीले पानी की तरी…
पानी में कनिष्ठ तारे अपनी परछाई देख रहे हैं।
अपने चेहरे देख, चमकीली होती आँखों से
अब वे मुझे देख रहे हैं।
ऐसा लगता जैसे अंजुम, बादल के घर में रह रहे हैं।
२
चंदा आख़िर बालक ठहरा
सितारों संग कुछ खेल रहा है,
बादल के परदे से झाँक,
तारे टिमटिम बोल रहे हैं।
सुरभि-स्नात समीर पटों को
शनैः-शनैः आहट देता है,
तारे डरकर मद्धिम होते कभी छबीले हो जाते हैं।
३
चंदा के खेतों में
बादल के सरसब्ज़ फ़सल से,
तारे ऐसे झाँक रहे हैं
जैसे गौरैया फ़सल की बाली के पीछे छुपकर,
ताराधिप के दीपशिखा से, बदन को अपने छिपा रही हैं…
और अपने ठोरों से शस्य रसास्वादन कर रही हैं।
प्रातः दर्शन होते ही पखेरू
सूरज की आहट को भाँप,
फिर से उन्हीं फसलों में छिप जाते हैं।
मैं, दूर देश का पथिक, मौन-सम्मति हो,
दृश्यावलियों से हर्षोन्मत्त हो रहा हूँ।
...“निश्छल”
वाह !!! बहुत खूब ..सुंदर .. अप्रतीम भाव
ReplyDeleteसादर नमन आदरणीया🙏🙏🙏
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