कथन

श्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ हमदम...।
...“निश्छल”

23 September 2021

खिन्न कविता

खिन्न कविता


✒️
यदि खिन्न बहुत हो अंतर्मन, कविता फिर भी लिखना चाहें
उभर-उभरकर मन में चिपके, भाव लगे कुछ कहना चाहें।
रुक-रुककर उगतीं कविताएँ, पृष्ठभूमि पर अंतर्मन के
जब दो चरण लिखें कविता के, माथा सहसा तब ही ठनके।।

कि,
भई! क्या लिख दिया...?

कभी संतुलन नहीं शब्द पर, भावप्रवण संकुलता गायब
नहीं पंक्ति बनती कविता की, व्यथा बैठकर लिखते साहब।
कभी व्याकरण के स्वभाव को, अंकित करने में थक जाना
कभी नज़्म की पकड़, ग़ज़ल या, कथा पुराणों की लिख जाना।।

छंद-रसों से दूर कभी तो, काव्यालंकृत भावुक रेखा
कविता मन में सृजित नहीं हो, भ्रम में कवियों को भी देखा।
चंचल कलम, कभी तत्सम को, तद्भव से रेखांकित करती
चार शब्द लिखकर रुक जाती, मात्रा की संगणना करती।।

भाँति-भाँति के रूप पद्य में, मनोभाव उत्कीर्णित करना
नेत्र छलकते सद्भावित हो, अलंकार आलिंगित करना।
ऐसे कविता बने नहीं फिर, अंतर्मन में ही झुँझलाना
सुला लेखनी को काग़ज़ पर, मन की आहट में खो जाना।।

मगर, इसी तंद्रा से उगते, काव्य अलौकिक शील मनन में
चरण संलयन पूरा होता, स्पंदन का संचार सृजन में।
है इसी भाव को रख देता, कवि, द्रवित रूप में स्याही सा
उच्छलित काव्य की सरिता में, बहता जाता है राही सा।।
...“निश्छल”

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. खिन्न अंतर्मन के भावातिरेक पर लाजवाब मुक्तक काव्य सृजन
    कवि ही कविमन को समझ सकता है
    बहुत ही लाजवाब।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. कवि मन के भावों की सुंदर,सटीक अभिव्यंजना ।

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  5. छंद-रसों से दूर कभी तो, काव्यालंकृत भावुक रेखा
    कविता मन में सृजित नहीं हो, भ्रम में कवियों को भी देखा।
    चंचल कलम, कभी तत्सम को, तद्भव से रेखांकित करती
    चार शब्द लिखकर रुक जाती, मात्रा की संगणना करती।।
    ----/
    हर बंध एक क्षुबि कवि के मन की सटीक व्याख्या है।
    आपकी रचनाएँ विशिष्ट हैं अमित जी।
    सादर।

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